नालंदा को किसने तोड़ा इसे लेकर सोशल मीडिया पर मतभेद शुरू हो गए हैं। इसे लेकर दो बातें कही जा रही है पहली यह की नालंदा को ब्रह्मणों ने तोड़ा औऱ दूसरा ये की नालंदा को मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने तुड़वाया था।
सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक में नालंदा विश्वविद्यालय इस वक्त छाया हुआ है। क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के राजगीर में नालंदा यूनिवर्सिटी का इनोग्रेशन किया। इस वक्त लोगो को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बुद्ध की इस धरती यानी भारत के साथ आज दुनिया के सभी देश कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते है। 19 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा यूनिवर्सिटी के इनोग्रेशन के दौरान ये भी कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय वसुधैव कुटुंबकम की भावना का एक सुंदर प्रतीक है।
एक वक्त पर नालंदा भारत की पंरपरा और पहचान का जीवंत केंद्र हुआ करती थी। पीएम मोदी यह बात उस नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में बोल रहे थे जो अब खंडहर हो चुका है लेकिन अपने आप में यह खंडर एक इतिहास समेटे हुए है। बता दें कि हाल ही में जिस नालंदा यूनिवर्सिटी का इनोग्रेशन किया गया है वह नालंदा के खंडहरों से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पीएम मोदी ने नालंदा यूनिवर्सिटी को प्राचीन नालंदा की शिक्षा परंपरा को पुनर्जीवित करने और इसे एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षण संस्थान के रूप में विकसित करने का उद्देश्य बताया। इसका मकसद वैश्विक शिक्षा के क्षेत्र में भारत को पुनः एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाना है और एशियाई सभ्यता के अध्ययन को बढ़ावा देना है।
किसने तोड़ा नालंदा को ?
इतिहास कहता है कि नालंदा एक प्रसिद्ध संस्थान था जिसका संबंध बौद्ध धम्म से था। जहाँ बौद्ध धम्म के महायान अध्ययन और प्रचार पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता था। हालांकि 12वी शताबदी में इसे तोड़ दिया गया। लेकिन इस घरोहर को किसने तोड़ा इसे लेकर सोशल मीडिया पर मतभेद शुरू हो गए हैं। इसे लेकर दो बातें कही जा रही है पहली यह की नालंदा को ब्रह्मणों ने तोड़ा औऱ दूसरा ये की नालंदा को मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने तुड़वाया था।
JNU में इतिहास की प्रोफेसर रूचिका शर्मा ने और कुछ विद्वानों और इतिहासकारों, जैसे श्रीधर वेंकट राघवन ने लामा तारानाथ का हवाला देते हुए यह दावा किया है कि नालंदा का विनाश ब्राह्मणों द्वारा बौद्ध धम्म के प्रति शत्रुता के कारण किया गया था। जिसका जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार दीलीप मंडल ने कहा कि आपकी इतिहास लेखन की विधि गलत है. नालंदा को जलाने का आरोप ब्राह्मणों पर लगाना इतिहास को सिर के बल खड़ा करने वाली बात है. अल्पसंख्यकवाद के चक्कर में सवर्ण वामपंथी इतिहासकार ये करते हैं. भारत में इतिहास लेखन पर उनका ही कब्जा है. आपने दो तिब्बती सोर्स के आधार पर जो निष्कर्ष निकाला है वह संदिग्ध है.
नालंदा पर जब बख्तियार खिलजी ने आक्रमण किया तब तक वहां पाल राजवंश का शासन था. नालंदा और आसपास के इलाके पर कभी ब्राह्मणों का राज नहीं रहा. इससे पहले के चार सौ साल में यहां अधिकतर समय बौद्ध राजा रहे. पाल राजवंश भी बौद्धों का है. नालंदा को जलाने का आरोप आप ब्राह्मणों पर कैसे लगा रही हैं?
वह आगे लिखते हैं कि मूर्तियों को तोड़ना या स्ट्रक्चर को नष्ट करना या ग्रंथों को जलाना ब्राह्मण विधि नहीं है बुद्ध की मूर्ति तोड़ने की सबसे ताजा घटना भी अफगानिस्तान की है. लिखित इतिहास में इसका कोई प्रमाण नहीं है कि ब्राह्मणों ने बुद्ध की मूर्ति तोड़ी या मठ जलाए. नालंदा के विध्वंस पर बाबा साहब को पढ़ा जाना चाहिए. कृपया उनकी रचनावली का वॉल्यूम तीन देखें. उन्होंने इस विनाश के लिए स्पष्ट तौर पर मुस्लिम हमलावरों को जवाबदेह बताया है.
नालंदा और डॉ आंबेडकर
आखिर में जब हम इन सारी चीजो का निष्कर्ण निकालते हैं तो हमें बाबा साहेब अंबेडकर की राइटिंग्स मिलती है जिसमें सिंबल ऑफ नॉलेज डॉ. अंबेडकर ने लिखा है कि मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालन्दा विश्वविद्यालय और अन्य बौद्ध स्थलों को नष्ट किया था।
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने नालंदा विश्वविद्यालय के विनाश के लिए स्पष्ट रूप से 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी को जिम्मेदार ठहराया, जिसके अनुसार यह आक्रमण बौद्ध धम्म को समाप्त करने का प्रयास था, जिससे बौद्ध धर्म और उसकी शिक्षा प्रणाली को गंभीर नुकसान हुआ। आंबेडकर ने मुस्लिम आक्रमणकारियों को बौद्ध धम्म के पतन का मुख्य कारण माना है।
नालंदा को बौद्ध विश्वविद्यालय बनाया जाए
इसी के साथ दिलीप मंडल ने एक नालंदा को बौद्ध विश्वविद्यालय बनाने की मांग भी कर डाली है। उन्होंने लिखा कि, “जब जामिया और अलीगढ़ जैसे विश्वविद्यालय मुस्लिम विश्वविद्यालय हो सकते हैं तो नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय क्यों नहीं?” उनका यह सवाल भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों की पहचान और उन्हें संरक्षित करने की दिशा में एक विचारणीय पहल है। इस सवाल से यह बात उभरती है कि यदि कुछ विश्वविद्यालय विशिष्ट धार्मिक समुदायों की पहचान के रूप में स्थापित हो सकते हैं, तो बौद्ध धम्म की प्राचीन और महत्वपूर्ण धरोहर, नालंदा विश्वविद्यालय, को बौद्ध विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता क्यों नहीं दी जा सकती है? क्या इस परियोजना का उद्देश्य केवल वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल करना है, या इसके माध्यम से स्थानीय समाज और उनके हितों का भी ध्यान रखा गया है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि किसी भी बड़े परियोजना के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का ध्यान रखना आवश्यक है, खासकर जब वह परियोजना एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी हो
बौद्ध धम्म और नालंदा विश्वविद्यालय
प्राचीन युग में नालंदा विश्वविद्यालय भारत का एक प्रमुख शिक्षण संस्थान था, जो लगभग 5वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक बिहार राज्य के नालंदा में स्थित था। यह विश्वविद्यालय विश्वभर के छात्रों और विद्वानों को गहन शिक्षा के लिए अपनी और आकर्षित करता था, इसमें कई महत्वपूर्ण विषय की उच्च शिक्षा दी जाती थी, जिनमें बौद्ध धर्म, दर्शन, गणित, आयुर्वेद, और विज्ञान शामिल थे
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इसके निर्माण के लिए विभिन्न शासकों ने भरपूर सहयोग किया और इसे समय-समय पर विकसित किया जाता रहा है ताकि शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ता रहे। यहाँ अनेक मठ और विद्यालय थे, और इसकी लाइब्रेरी ‘धर्मगंज’ तीन प्रमुख भवनों में विभाजित थी जिनका नाम रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक था।
नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धम्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहाँ महायान बौद्ध धर्म के अध्ययन और प्रचार पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता था। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान जैसे नागार्जुन, दिङ्नाग, और धर्मकीर्ति यहाँ शिक्षण और अध्ययन करते थे। यह विश्वविद्यालय बौद्ध धम्म के अध्ययन के लिए दूर-दूर से छात्रों और विद्वानों को आकर्षित करता था।