क्या आपने कभी देखा है कि कोई ब्राह्मण नायिका सिनेमाई पर्दे पर अदाकारी कर रही हो और लोग सिर्फ उसके ब्राह्मण होने की वजह से फिल्म में उसके होने पर आपत्ति जताए… या थिएटर में स्क्रीन ही तोड़ दें। जाहिर सी बात है, बिल्कुल नहीं लेकिन 1930 का दशक ऐसा था जब एक दलित नायिका को ब्राह्मणवादियों कि दकियानूसी सोच के चलते अपना भविष्य दाव पर लगाना पड़ा था।
दलित टाइम्स के कॉलम एससी/एसटी नायक में पढ़िए भारत की पहली दलित हिरोइन P.K. रोज़ी के बारे में.. जो बता रहीं है सुषमा तोमर…
साल 1928 का दौर था जब तथाकथित उच्च कुल की लड़कियां सिनेमा में काम नहीं करती थीं इसी समय केरल की पहली फिल्म बन कर तैयार हुई थी। जिसका नाम था, ‘विगथकुमारन’, जिसे केरल के मशहूर फिल्म मेकर जे.सी डेनियल ने बनाया था। जेसी डेनियल ने फिल्म में नायिका के किरदार के लिए एक दलित महिला को चुना था। हालांकि इसके पीछे भी एक लंबी कहानी है कि एक ऐसे दौर में जब महिलाओं को ही ना के बराबर फिल्मों में काम करने की इजाज़त थी वहाँ दलित महिला को नायिका के रूप कैसे लिया गया ? ये पूरा किस्सा आपको लेख में आगे पढ़ने के लिए मिलेगा लेकिन उससे पहले थोड़ी भूमिका बांधना जरूरी है।
कहते हैं कि सिनेमा समाज का आईना होता है और जो समाज में घटता है वह किसी न किसी रूप में हमें सिनेमा में देखने के लिए मिलता है। लेकिन 7 नवंबर 1928 को इस आईने में जातिवाद का घिनौना चेहरा दिखाई दिया। तमिलनाडु के कैपिटल थिएटर में पी.के. रोज़ी की फिल्म का प्रीमियर होना था। लेकिन फिल्म रिलीज होने से पहले ही आलोचनाओं से घिर गयी। ब्राह्मणवादियों में यह जानते ही रोष पैदा हो गया कि ऊंची जाति की लड़की का किरदार एक दलित लड़की कैसे कर सकती है। इसके बाद थिएटर में और पी. के. रोज़ी के साथ जो हुआ वो वाक्या आपके बदन में भी सिहरन पैदा कर देगा।
कौन थी पी. के रोज़ी :
सर्च इंजन गूगल पर पीके रोज़ी की एक तस्वीर के अलावा कोई भी जानकारी मौजूद नहीं है। इसलिए उनकी निजी जिंदगी की जानकारी दैनिक भास्कर के हवाले से दे रहे हैं। साल 1903 जब भारत में अंग्रेजों की गुलामी के साथ- साथ जातिवाद, छुआछूत और जातिभेद भी था। उस वक्त तिरुवतंपुरम के नंदकोड़े में एक गरीब परिवार में पी.के राजम्मा का जन्म होता है। उनके परिवार में माँ, बाप और एक छोटी बहन थी। छोटी उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ गया और रोज़ी को बचपन में ही कमाने के लिए घर से निकलना पड़ा। घास काट कर घर का गुजारा होता। 1920 में परिवार को सहारा मिला और राजम्मा के चाचा उन्हें अपने साथ ले गए।
1920 का दशक दक्षिण भारत में ईसाई धर्म के फैलाव का था इसी दौरान राजम्मा की माँ ने LMS चर्च के पादरी से दूसरी शादी कर ली। सौतेले पिता ने राजम्मा को ईसाई धर्म स्वीकार करवा दिया। लेकिन रोज़ी माँ के साथ नहीं गयी उन्होंने दादाजी के साथ रहना ही उचित समझा।
छोटी जाति की लड़कियों को ऊंचे सपने देखने का हक नहीं :
चंचल स्वभाव की रोज़ी को नाचने गाने का बड़ा शौक था लेकिन उस वक्त नाचना-गाना सिर्फ दो ही तरह के लोगों को शोभा देता था एक ऊंचे घराने के लोगों को और दूसरा तवायफों को। और रोज़ी इन दोनों में से कोई नहीं थी। इसलिए उसके इस शौक को अच्छा नहीं माना गया। दादाजी ने रोज़ी के नाचने गाने का खूब विरोध किया। लेकिन उसकी लगन देखकर चाचा ने उसे आर्ट स्कूल में भर्ती करवा दिया। रोज़ी ने यहाँ कक्काराशी फोक डांस सीखा।
यह एक ऐसी कला है जिसमें शिव-पार्वती के धरती पर आने की कहानी को डांस और गाने के ज़रिए दिखाया जाता है। दादाजी अब रोज़ी से और नाराज़ हो गए और उन्होंने रोज़ी को स्कूल जाने से रोका लेकिन रोज़ी नहीं रूकी। उसने अब एक ड्रामा कंपनी भी जॉइन कर ली थी। समाज को अब ये नागवार गुज़रा, इस पर आपत्ति जताई गयी और हार कर दादाजी ने रोज़ी को घर से निकाल दिया। रोज़ी को ड्रामा कंपनी के लोगों के साथ ही रहने को मजबूर होना पड़ा।
राजम्मा से रोज़ी बनने की यह थी कहानी :
समाज और परिवार की परवाह नहीं करने वाली अपने सपनों को अहमियत देने वाली राजम्मा को रोज़ी नाम कैसे मिला इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। केरल के मशहूर फिल्म मेकर जे.सी. डेनियल अपनी फिल्म ‘विगथकुमारन’ बना रहे थे। फिल्म के लिए मुंबई से मिस लाला को फिल्म की हीरोइन बनाने के लिए बुलाया गया। लेकिन अपने हिसाब से रहन-सहन के इंतज़ाम ना पाकर मिस लाला ने फिल्म छोड़ दी। जे. सी. डेनियल को अब फिल्म के लिए एक नयी हीरोइन की तलाश थी। डेनियल के दोस्त जॉनसन ने डेनियल के सामने राजम्मा को लाकर खड़ा कर दिया। डेनियल की मजबूरी थी इसलिए उन्होंने राजम्मा को हीरोइन बना लिया लेकिन डेनियल राजम्मा के नाम को लेकर आश्वस्त नहीं थे। वह चाहते थे कि फिल्म की हीरोइन का नाम मिल लाला जैसा हो इसलिए उन्होंने पी.के.राजम्मा को बना दिया पी.के रोज़ी।
हीरोइन बनी लेकिन छुआछूत का करना पड़ा सामना :
रोज़ी को फिल्म के लिए रोज 5 रुपए दिए जाते। 10 दिन तक चली शूटिंग में रोज़ी को पूरे 50 रुपए मिले। लेकिन शूटिंग के दौरान सेट पर छुआछूत से रोज़ी बच ना सकीं। उन्हें सेट पर कोई भी चीज छूने की मनाही थी। यहाँ तक की सेट पर बाकियो के लिए जो खाना आता था रोज़ी को वो भी खाने के लिए नहीं मिलता। रोज़ी अपना खाना घर से लेकर आती और अकेले बैठकर खाती। अखबारों में जब यह खबर छपी की जे.सी डेनियल की फिल्म की हिरोइन एक दलित लड़की पी.के. रोज़ी है और जो फिल्म में एक ऊंची जाति की लड़की का किरदार निभा रही है। जातिवादियों को ये रास नहीं आया। लेकिन 10 दिन के भीतर फिल्म बनकर तैयार हो गयी।
दलित लड़की के साथ बैठ कर फिल्म नहीं देखेंगे :
फिल्म बनकर तैयार थी उसका प्रीमियर होने वाला था। डेनियल ने अभिनेत्री रोज़ी को इस प्रीमियर शो के लिए आमंत्रित नहीं किया था। मुख्य अतिथि गोविंद पिल्लई थे जो कि पेशे से एक प्रसिद्ध वकील थे और फिल्म का इनॉग्रेशन करने वाले थे। पर इस सबसे अनजान रोज़ी, एक मित्र के साथ ये शो देखने पहुंच गईं। रोज़ी को देखते ही गोविंद पिल्लई ने नाराजगी जताते हुए कहा कि जब तक रोज़ी वहां रहेगी वह इनॉग्रेशन नहीं करेंगे।
वह एक दलित लड़की के साथ बैठ कर फिल्म नहीं देखेंगे. डेनियल ने रोज़ी से आग्रह किया कि वो बाहर चली जाए और अगला शो देखने थिएटर में वापस आए। रोज़ी मान गईं और थिएटर से चली गई। अपनी ही फिल्म को देखने के लिए रोज़ी बाहर खड़ी होकर इंतज़ार करती रही।
प्रीमियर पर जो हुआ वो पी.के रोज़ी भुला नहीं पाई :
जैसे तैसे इनॉग्रेशन हुआ और फिल्म का प्रीमियर शुरू हुआ। लेकिन फिल्म में दलित लड़की के होने पर गुस्साए लोग वो सीन देखकर और आग बबूला हो गए जिसमें उच्च जाति का हीरो दलित हीरोइन के बालों में लगा फूल चूम रहा था। बस फिर क्या था इस एक सीन ने उन लोगों के मन में लगी आग में घी डालने का काम किया और उच्च जाति के दर्शकों ने थिएटर की स्क्रीन तोड़ना शुरू कर दिया। थिएटर को आग के हवाले कर दिया गया।
इतना ही नहीं भीड़ रोज़ी के घर तक भी पहुंच गई और उसके घर पर भी पत्थरबाजी की गई। लोगो ने रोज़ी के घर को आग लगा दी। इसके बाद 25 साल की रोज़ी ने कभी कोई फिल्म नहीं की क्योंकि अपनी पहली फिल्म के किरदार के चलते उन्हें अपना सब कुछ गवाना पड़ा। रोज़ी ने अपना घर छोड़ दिया। सिनेमा की दुनिया से गायब हो गईं। पी.के रोज़ी को दलित होने की एक भारी कीमत चुकानी पड़ी. सिनेमा में नायिका के बिना नायक अधूरा होता है लेकिन इस घटना ने सिनेमा में किरदारों की भी जातियां तय कर दी थी। इस जातिवादी मानसिकता ने कला के बदले कलाकार की जाति को महत्व देना ज्यादा जरूरी समझा था।
गुमनाम हो गयी पहली दलित नायिका :
थिएटर और रोज़ी के घर में लगी आग ने सब कुछ राख कर दिया था। रोज़ी का सपना भी और उसकी पहचान भी। रोज़ी को शहर छोड़कर भागना पड़ा। रोज़ी ने जिस बस ड्राइवर केसावा से मदद मांगी वो उंची जाति का था। केसावा रोज़ी को तमिलनाडु के नागरकोइल ले आया। दोनों ने शादी कर ली। केसावा के परिवार ने दलित बहु को अपनाने से मना कर दिया। केसावा और रोज़ी ने अपनी अलग जिंदगी शुरू की।
दोनों की दो बेटियां हुई लेकिन रोज़ी ने कभी अपना इतिहास नहीं बताया। ये भी नहीं की मलयाली की पहली फीचर फिल्म “विगताकुमारत” की वो पहली दलित हीरोइन थी। शादी के बाद रोज़ी, राजम्मा पिल्लई बन गयी और गुमनामी में जिंदगी बिताने लगी। उनकी सिर्फ एक तस्वीर के अलावा गूगल पर ज्यादा जानकारी मौजूद नहीं है। 2023 में जब गूगल ने उनका डूडल बनाया तो एक बार फिर भारत में फिल्म, दलित हीरोइन रोज़ी और जातिवाद पर चर्चा शुरू हुई।
कुछ मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि दलित लड़की को फिल्म में नायिका के तौर पर प्रदर्शित करने का खामियाजा जे.सी.डेनियल को भी उठाना पड़ा। अपनी जमीन बेचकर जो फिल्म बनाई थी उसके प्रीमियर पर थिएटर जला दिए गए। इसके बाद कर्ज़ में डूबे जे.सी. डेनियल ने कोई फिल्म नहीं बनाई और अपनी पूरी जिंदगी डेंटिस्ट बनकर काटी।