मद्रास HC ने अपने जाति-व्यवस्था वाले फैसले में किया बदलाव, पहले कहा था वर्तमान जाति व्यवस्था सौ साल से भी कम पुरानी

April 02, 2024 | By Maati Maajra
मद्रास HC ने अपने जाति-व्यवस्था वाले फैसले में किया बदलाव, पहले कहा था वर्तमान जाति व्यवस्था सौ साल से भी कम पुरानी

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि वर्तमान जाति व्यवस्था एक सदी से भी कम पुरानी है और उसे पुरातन वर्ण व्यवस्था से नहीं जोड़ा जा सकता। अब कोर्ट ने अपने इस आदेश में बदलाव किए हैं और कहा है कि जातियों का वर्गीकरण एक नई और हालिया व्यवस्था है…

Chennai news : मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इस टिप्पणी को हटा दिया है कि जाति व्यवस्था की उत्पत्ति एक सदी से भी कम पुरानी है। न्यायालय का ऐसा कहना है कि वह इस बात से सहमत है कि समाज में जाति के आधार पर भेदभाव मौजूद है और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। लेकिन जाति व्यवस्था की उत्पत्ति जैसा कि हम आज जानते हैं, एक सदी से भी कम पुरानी है के स्थान पर न्यायालय का कहना है कि कि जाति के आधार पर असमानताएं हैं, जो आज समाज में मौजूद हैं और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हालाँकि, जातियों का वर्गीकरण, जैसा कि हम उन्हें आज जानते हैं, एक अधिक हालिया और आधुनिक घटना है।

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जातियों का वर्गीकरण एक नई और हालिया व्यवस्था :

दरअसल इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने मंत्री उदयनिधि स्टालिन, मंत्री शेखर बाबू और सांसद ए राजा के पद पर बने रहने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अपने हालिया फैसले से जाति व्यवस्था की उत्पत्ति के बारे में की गई टिप्पणी को हटा दिया है। मद्रास हाई कोर्ट ने वीरवार 7 मार्च को तमिलनाडु के राज्य मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म को लेकर दिए गए बयान की निंदा की थी। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि वर्तमान जाति व्यवस्था एक सदी से भी कम पुरानी है और उसे पुरातन वर्ण व्यवस्था से नहीं जोड़ा जा सकता। अब कोर्ट ने अपने इस आदेश में बदलाव किए हैं और कहा है कि जातियों का वर्गीकरण एक नई और हालिया व्यवस्था है।

6 मार्च को अपलोड किए गए फैसले में, न्यायमूर्ति अनीता सुमंत ने कहा था कि, यह स्पष्ट रूप से सहमत हैं कि आज समाज में जाति के आधार पर असमानताएं मौजूद हैं और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हालाँकि, जाति व्यवस्था की उत्पत्ति जैसा कि हम आज जानते हैं, एक सदी से भी कम पुरानी है। अब वर्तमान में मद्रास उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध इस टिप्पणी को हटा दिया गया है। इसके स्थान पर ये देखा गया है, कि ” न्यायालय स्पष्ट रूप से सहमत हैं कि जाति के आधार पर असमानताएं हैं, जो आज समाज में मौजूद हैं और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हालाँकि, जातियों का वर्गीकरण, जैसा कि हम उन्हें आज जानते हैं, एक अधिक हालिया और आधुनिक घटना है…”

विभाजनकारी टिप्पणी :

अदालत का ऐसा भी कहना है कि सनातन धर्म एक उत्थान महान और सदाचारी आचार संहिता को दर्शाता है। इसलिए मंत्रियों और सांसद ने सनातन धर्म पर जो विभाजनकारी टिप्पणी की है वो गलत है। हिंदू मुन्नानी संगठन के पदाधिकारियों टी मनोहर, किशोर कुमार और वीपी जयकुमार द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से दायर याचिकाओं पर ये टिप्पणियां की गईं। हालांकि अदालत ने बयानों को विकृत और विशेष समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने वाला माना, लेकिन उसने मंत्री के खिलाफ यथास्थिति जारी करने से इनकार कर दिया और कहा कि चूंकि मंत्रियों और सांसदों के खिलाफ FIR में कोई दोष साबित नहीं हुआ है।

आदेश पारित करने से मना :

अदालत ने कहा था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्यता की सूची लक्ष्मण रेखा की तरह है और अदालत इसका पालन करने के लिए बाध्य है। इस प्रकार, यह देखते हुए कि लंबित आपराधिक कार्यवाही में मंत्रियों/सांसदों को दोषी नहीं ठहराया गया था इसलिए अदालत ने कार्यालय के खिलाफ कोई भी आदेश पारित करने से मना कर दिया है।

(Dalit times)