लोकसभा चुनाव- 2024 को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। भाजपा का दलित वोटों को मिलाकर हिंदू वोट का ध्रुवीकरण और मुस्लिम वोटों पर फोकस विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।
यूपी में 29 सीटें मुस्लिम और 17 सीटें दलित वोटों से प्रभावित हैं। यूपी में मुस्लिम का वोट का प्रतिशत 16 प्रतिशत और दलित वोट 22 प्रतिशत है। चुनाव से पहले सपा और कांग्रेस का गठबंधन इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हो रहा है। हालांकि बसपा अभी अलग लड़ने की बात कर रही है। पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में अकेले लड़कर बसपा को अपनी जमीन का पता भी चल गया है। अनुसूचित जाति का कैडर वोट भी उससे अलग हुआ है।
कांग्रेस का कभी यह मजबूत कैडर वोट छिटक चुका है। इसी को पाने के लिए कांग्रेस संघर्ष कर रही है और गठबंधन कर रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के तहत अलग-अलग जातियों व समाज को साधने में लगे हुए हैं। वे पिछड़ों व अल्पसंख्यक के साथ सर्वाधिक फोकस दलितों पर कर रहे हैं। यूपी में खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, कैराना, बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, बुलंदशहर, अलीगढ़, बदायूं अल्पसंख्यक बहुल खासकर मुस्लिम की अधिक आबादी वाली सीटों में शामिल हैं। उधर, बीजेपी चाहती है कि अगर पांच से दस हजार अल्पसंख्यक भी पार्टी से जुड़ जाए तो परिणाम अलग होंगे। यूपी में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा पीएम मोदी की मंशा के मुताबिक सभी उन 29 सीटों पर अपना फोकस कर रहा है जहां अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम अधिक हैं। ये सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भारतीय जनता पार्टी काफी दिन से पसमांदा मुसलमानों को साधने की रणनीति पर बढ़ रही हैं। खुद पीएम ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग में मुस्लिम से जुड़ने का संदेश दिया था। हाल ही में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने 10 मार्च से देश भर में अल्पसंख्यकों से जुड़ने का प्रोग्राम शुरू करने का प्लान तैयार कर रखा हैं। दरअसल, देशभर में 60 अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर बीजेपी की नजर हैं।एएमयू के पूर्व कुलपति प्रो. तारिक मंसूर भी भाजपा में शामिल हुए हैं। पार्टी ने उन्हें एमएलसी बनाकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद देकर उनका कद भी बढ़ाया। भाजपा उन्हें एक शिक्षित मुसलमान का चेहरा बनाकर लोकसभा चुनाव में पेश करना चाहती है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सभी 17 दलित सीटों को जीतने में सफल रही थी वहीं, 2019 के चुनाव में उसे 15 सीटों पर सफलता मिली थी जबकि दो सीटें बसपा की झोली में गईं थीं। प्रदेश में दलित बहुल सीटों में आगरा, बिजनौर, अकबरपुर, नगीना, लालगंज आदि सीटें भी शामिल हैं।
उधर, समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 17 सीटें देनें पर राजी हो गई। कांग्रेस को अमेठी, रायबरेली, प्रयागराज, वाराणसी, महाराजगंज, देवरिया, बासगांव, सीतापुर, अमरोहा, बुलंदशहर, गाजियाबाद, कानपुर, झांसी, बाराबंकी, फतेहपुर सीकरी, सहारनपुर और मथुरा सीट दी है। 63 सीटों पर सपा अन्य दलों के साथ लड़ेगी।
सफल नहीं रहा था बसपा और सपा का गठबंधन
उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें आती हैं। यूपी की राजनीति के लिहाज से 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद अहम रहा था, इस चुनाव में पहली बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए प्रदेश की दो सबसे बड़ी सियासी पार्टियों सपा-बसपा ने हाथ मिला लिया था। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मायावती और अखिलेश कभी एक साथ एक मंच पर आएंगे, लेकिन 2019 में ऐसे हुआ।
माना जा रहा था कि इन दोनों के हाथ मिलाने से बीजेपी को जबर्दस्त झटका लगता लेकिन ऐसा कतई नहीं हुआ। यूपी में बीजेपी की ऐसी आंधी चली कि गठबंधन हवा हो गया। कांग्रेस का तो बुरा हाल हो गया था। भाजपा ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 62 सीटों पर पार्टी कमल खिलाने में कामयाब हो गई। बीजेपी की सहयोगी अपना दल एस को दो सीटों पर जीत हासिल हुए। सपा बसपा गठबंधन कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाया। बसपा के खाते में जहां 10 सीटें आई तो वहीं सपा को सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष अशोक यादव ने बताया कि कांग्रेस और सपा के एक साथ लड़ने से विपक्ष का वोटों का बिखराव रुकेगा। बिखराव रुकने से ही विपक्ष को लाभ मिलेगा। हालांकि भाजपा सरकार से सवर्ण भी परेशान है। व्यापारियों को व्यापार बचाना और करना दोनों ही मुश्किल हो रहा है। किसान भी त्रस्त है। महंगाई से आमजन भी परेशान है। बेरोजगारी की बड़ी समस्या है। इसका रिफलेक्शन लोकसभा चुनाव में जरूर दिखाई देगा।