देश के भाग्य को आकार देने में श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हर साल मई में श्रमिकों के सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। यह दिवस श्रमिक वर्गो का उत्सव है। जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक आंदोलनों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। आज श्रमिकों को जो अधिकार प्राप्त हैं उसका श्रेय डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर को दिया जाता है।
‘इंडिपेन्डेंट लेबर पार्टी’ का गठन किया
बाबा साहेब अंबेडकर ने श्रमिकों के उत्थान और अधिकारों के लिए 1936 में “इंडिपेन्डेंट लेबर पार्टी” का गठन किया था। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाबा साहेब अंबेडकर मजदूर, गरीब, शोषित, पीड़ित हर हाशिये के व्यक्ति के प्रति कितने गंभीर थे। पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई 1886 को मनाया गया था। इस दिवस की मुख्य मांग का आधार था कि मजदूरों के लिए प्रति श्रम दिन केवल 8 घंटे होना चाहिए । इस प्रस्ताव को वाल्टीमेर (अमेरिका) के मजदूरो के कंवेंशन में पारित किया गया था ।
प्रति श्रम दिन केवल 8 घंटे होना चाहिए
भारत में पहली बार मज़दूर दिवस 1923 में मद्रास में मनाया गया था। श्रम विभाग की स्थापना नवंबर 1937 में हुई थी। बाबा साहेब अंबेडकर ने जुलाई 1942 में श्रम विभाग का कार्यभार संभाला था। जब बाबा साहेब अंबेडकर ने श्रम विभाग सभाला था तब उस समय सिंचाई और बिजली के विकास के लिए योजना और नीति का निर्माण करना मुख्य चिंता थी।
1942 में जब बाबा साहेब अंबेडकर श्रम विभाग का कार्य संभाल रहे थे। तब उस समय बिजली प्रणाली विकास, हाइडल पावर स्टेशन साइटों, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक सर्वेक्षणों, बिजली उत्पादन और थर्मल पावर स्टेशन की समस्याओं की जाँच पड़ताल करने के लिए केंद्रीय तकनीकी पावर बोर्ड” (CTPB) का गठन करने का फैसला लिया गया था। इसके अलावा बाबा साहेब अंबेडकर ने वाल्टिमेर के कन्वेंशन की भांति फैक्ट्रियों में मजदूरों के 12 से 14 घंटे काम करने के नियम को बदल कर 8 घंटे कर दिया था।
महिला श्रमिकों के लिए कानून बनाएं
महिला श्रमिकों के लिए भी बाबा साहेब अंबेडकर ने खान मातृत्व लाभ अधिनियम, महिला श्रम कल्याण कोष, महिला और बाल श्रम संरक्षण अधिनियम, महिला श्रम के लिए मातृत्व लाभ और कोयला खदानों में भूमिगत कार्य पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध की बहाली आदि जैसे कानून बनाए।
‘राइट टू स्ट्राइक’ को मान्यता दी
बाबा साहेब ने श्रम सदस्य के रुप में 1946 में केंद्रीय असेम्बली में न्यूनतम मजदूरी निर्धारण सम्बन्धी एक बिल पेश किया जो 1948 में जाकर देश का ‘न्यूनतम मजदूरी कानून’ बना। बाबा साहेब ने 1946 में “लेबर ब्यूरो” की स्थापना भी की। बाबा साहेब ने ही मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को स्वतंत्रता का अधिकार माना और कहा कि “ मजदूरों को हड़ताल का अधिकार न देने का अर्थ है मजदूरों से उनकी इच्छा के विरुद्ध काम लेना और उन्हें गुलाम बना देना।“
मजदूरों का दुश्मन पूंजीवाद
लेकिन बम्बई प्रांत की सरकार मजदूरों के हड़ताल के अधिकार के विरूद्ध थी। इसलिए बम्बई प्रांत की सरकार 1938 में मजदूरों के हड़ताल के अधिकार के विरूद्ध “ट्रेड डिस्प्यूट बिल” पास करना चाहती थी। लेकिन बाबा साहेब “ ट्रेड यूनियन” के प्रबल समर्थक थे। बाबा साहेब का मानना था कि ट्रेड यूनियन भारत के मजदूरों के लिए जरुरी है। लेकिन वह यह बात भी अच्छे से जानते थे कि ट्रेड यूनियन भारत में अपना अस्तित्व खो चुका है। उनके अनुसार जब तक ट्रेड यूनियन सरकार पर कब्जा नहीं कर लेती तब तक वह मज़दूरों का भला कर पाने में अक्षम रहेंगी। और नेताओं की झगड़ेबाजी का अड्डा बनी रहेंगी। बाबा साहेब का मानना था कि भारत में मजदूरों का सबसे बडा दुश्मन पूंजीवाद है।
‘त्रिपक्षीय श्रम परिषद’ की स्थापना
डॉ अम्बेडकर ने श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा के उपायों को सुरक्षित रखने के लिए 1942 में ‘त्रिपक्षीय श्रम परिषद’ की स्थापना की। मजदूरों को रोजगार देने और और श्रमिक आंदोलन को मजबूत करने के लिए श्रमिकों और नियोक्ताओं को समान अवसर दिया। डॉ अंबेडकर ने बिजली क्षेत्र में ‘ग्रिड सिस्टम’ के महत्व और आवश्यकता पर जोर दिया, जो आज भी सफलतापूर्वक काम कर रहा है। अगर आज बिजली इंजीनियर ट्रेनिंग के लिए विदेश जा रहे हैं, तो इसका श्रेय डॉ अंबेडकर को जाता है। जिन्होंने श्रम विभाग के एक नेता के रूप में विदेशों में सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों को प्रशिक्षित करने के लिए नीति तैयार की।