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Roots, Mati Majra - a bilingual digital property where the margins become the mainstream
Vision
A form and content of journalism which is a parallel stream of consciousness. And, yet, a special kind of journalism which creates a synthesis of the margins and the mainstream, making, thereby, the margin as the mainstream.
That is, celebrating the crucial importance of stories from the invisible and remote terrain of the vast landscape of India. Hence, becoming, at once, the sound of silence, and the voice of the voiceless.
Opening the windows of a humble Dalit home in the Hindi heartland, with a camera, a recorder, a notebook and a pen. Bridging the distance between the camera and the keypad, the reporter and the editor. Telling a story hitherto untold in the mainstream media. The medium is the message. The subject is the message. The bitter reality of our times is the message.
Story-telling as a craft of journalism.
Ground reporting as an art-form of journalism.
Analysis and perspective, to open new windows of light and enlightenment.
The reporter must enter the mud hut of an adivasi in the Central Provinces. Trekking through miles of dense forests to reach an unexplored civilization, which still survives without electricity, water connections, toilets, primary schools and health care. Women as the protagonists of a new and inherited struggle – to protect their land and habitat, their forests, water bodies and rivers, their self-identity, memories and oral traditions.
Inside the soul and mind of a Muslim family. Notes from the underground. How does it feel to profiled, targeted, demonized, brutalized, hounded, humiliated, alienated – mob-lynched in a public space as a public spectacle? How does it feel to be a Muslim in contemporary India? Denied dignity and fundamental rights enshrined in our Constitution.
What are the aspirations of a Muslim child, the innocent daughter of a carpenter and blacksmith in the backyards of underdeveloped UP? What are the dreams of a Dalit boy who is writing an essay in school on India landing on the moon? Can he fly an aircraft, float in space, and send a patriotic message from the moon to a grateful nation? Will the talented Adivasi girl, who plays football, and who is an ace shooter – will she ever play for India?
The missing women of the pandemic. Where have all the migrant workers gone? Remember them? Walking in thousands, emaciated women holding the fingers of their children, carrying tattered sacks of all the worldly goods they have, barefoot, thirsty, hungry, exiled and condemned in their own land, left to their fate by a cruel State?
Roots, Mati Majra. Opening the doors of perception, the narrative of objectivity, the discourse of sanity, becoming the bridge between the soul and the mind. Understanding the body of the malnourished, the pangs of hunger. Celebrating the dreams from the margins. Flying with idealism as a non-violent weapon.
The stories, yet to be told. The stories -- which must be told. The stories which will change this beautiful land and landscape, like a Charlie Chaplin film, poised between spoof and laughter, tragedy and resilience, stoic honesty and the infinite dream of a new world.
(रूट्स) माटी माजरा - “हाशिये को मुख्यधारा से संयुक्त करने वाली एक द्विभाषिक डिजिटल संपादकीय संपदा”
दीर्घकालिक उद्देश्य:
वस्तुतः पत्रकारिता का ऐसा स्वरूप और अंतर्वस्तु जो चेतना की समानांतर धारा को परिभाषित करती है। कहना गलत न होगा कि एक विशिष्ट प्रकार की पत्रकारिता जिसके तहत हाशिये एवं मुख्यधारा का सांगोपांग अध्ययन एवं संश्लेषण किया जाता है ताकि हाशिये का जुड़ाव मुख्यधारा से संभव हो सके।
कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के व्यापक परिदृश्य के मद्देनजर दूरस्थ इलाकों में रिपोर्टिंग करना और उसे सार्वजनिक पटल पर लाना इस पत्रकारिता की मुख्य एवं महत्वपूर्ण भूमिका है। अतएव इस प्रकार मूक लोगों की जुबान बनना तथा उनकी गूंजती खामोशी को अपने रिपोर्ट-लेखन/विश्लेषण के माध्यम से नीति- निर्माताओं तक पहुँचाना हमारी पत्रकारिता का ध्येय है ।
एक कैमरा, एक नोटबुक, एक कलम, एक रिकाॅर्डर को लेकर हिन्दी पट्टी-प्रदेशों में किसी दलित के घर जाकर उनके सामाजिक उपेक्षा की अंत:पीड़ा को एहसास करते हुए अपने नोटबुक में लिपिबद्ध करना तथा कैमरे में देश के इन मूक एवं सिसकते पहलुओं को कैद कर नीति-निर्धारकों तक पहुँचाना हमारा लक्ष्य है। कैमरा एवं की-पैड तथा रिपोर्टर एवं संपादक की संबंधित दूरियों को पाटना ; ऐसे रिपोर्ट/समाचार विश्लेषण को सार्वजनिक पटल पर लाना जोकि पूर्व में मुख्यधारा-मीडिया में कभी रिपोर्ट न की गई हो, ऐसी पत्रकारिता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। वस्तुस्थिति यह है कि माध्यम ही संदेश है; विषय ही संदेश है; और कटु सत्य यह है कि कड़वी हकीकत ही संदेश है।
कहानी कहने की कला को बतौर पत्रकारिता के शिल्प कला के रूप में समझा जाता है।
ग्राउंड रिपोर्टिंग पत्रकारिता की कला रूप है।
विश्लेषण एवं परिप्रेक्ष्य अंधकारमय जीवन में प्रकाश एवं आत्मज्ञान का नये सिरे से बोध कराता है।
संवाददाताओं को मध्य प्रांतों में रहनेवाले आदिवासियों के मिट्टी से निर्मित झोपड़ियों में अवश्य जाना चाहिए। संवाददाताओं को मीलों-मील घने जंगल में ट्रेकिंग करते हुए दुर्गम स्थलों में अवस्थित अज्ञात सभ्यता का पता लगाना चाहिए जोकि आज भी अपने अस्तित्व में बरकरार है; और जोकि आज भी मूल सुविधाओं मसलन् ; बिजली,जल एवं नल कनेक्शन, शौचालयों, प्राइमरी विद्यालयों एवं बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। महिलाएँ बतौर नई एवं विरासत में मिले संघर्षों के समर्थकों के रूप में जोकि अपनी भूमि, अपने आवास, अपने जंगलों, जल सुविधाएँ, नदियाँ एवं अपनी खुद की पहचान,यादें एवं सदियों से चली आ रही उक्त परंपराओं को बचाने के लिए आज भी कटिबद्ध है ।
एक मुसलमान परिवार की आत्मा और मस्तिष्क में क्या चल रहा है, उसे हमारे संवाददाता पूर्णरूपेण कवरेज करेंगे । इसके अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं मसलन् ; उन मुसलमान परिवारों को अपमानित किया जाना, उन्हें समाज की मुख्यधारा से दूर रखना; उन्हें बतौर खलनायक घोषित किया जाना, उन पर नृशंस अत्याचार किया जाना, उनका पीछा किया जाना ; और भीड़ द्वारा सार्वजनिक स्थल में उन्हें प्रताड़ित कर मौत की सजा दिये जाने का तमाशा बनाना ; ऐसा किये जाने पर क्या महसूस होता है, इस दर्दनाक पहलु को उचित कवरेज दिये जाने की जरूरत है । आज इस समकालीन भारत में मुसलमान होना क्या होता है और एक मुसलमान क्या महसूस करता है ? क्या संविधान में प्रतिष्ठापित मौलिक अधिकारों और गरिमा से जीने का अधिकार समाप्त हो गया है ?
उत्तरप्रदेश-अंतर्गत अविकसित क्षेत्रों के पिछड़े तबकों से आने वाले लोहार एवं बढ़ई के मासूम बच्चियों एवं मुसलमान बच्चों की क्या आकांक्षाएँ है ? दलित विद्यार्थी जो चांद पर अवतरण विषय पर लेख लिख रहा है उसके क्या स्वप्न है? क्या वह एक हवाई जहाज उड़ा सकता है; अंतरिक्ष में उतर सकता है, कृतज्ञ राष्ट्र को चाँद पर पहुंँच कर देशभक्ति संदेश भेज सकता है ? क्या अच्छा फुटबाॅल खेलने वाली एवं इक्का निशानेबाज में पारंगत एक आदिवासी लड़की भारत के लिए प्रतिनिधित्व कर पायेगी?
महामारी में विलुप्त हुई महिलाएँ आज कहाँ है? महामारी में वे सभी प्रवासी मजदूर कहाँ गये? क्या हमने उन्हें कभी याद किया ? हजारों मजदूर एवं दुर्बल महिलाओं की अंगुलियांँ पकड़े छोटे-छोटे बच्चे, फटे बोरों एवं गठरियों में उनके रखे समान, नंगे पैर, भूख एवं प्यास से बेचैन, अपने ही जमीन से निष्कासित किये गये और क्रूर शासन द्वारा भाग्य भरोसे छोड़े गए ; क्या यह एक विचारणीय मुद्दा नहीं है?
(रूट्स) माटी माजरा सार्वजनिक धारणा के नए आयामों को उजागर करती हुई, वस्तुनिष्ठता की आख्यान (नरटिव) विकसित करती हुई, विवेक पर परिचर्चा करती हुई, आत्मा और मस्तिष्क के मध्य पुलिया की भाँति कार्य करने की प्रतिबद्धता है। माटी माजरा भूख एवं कुपोषण के शिकार हुए बच्चों की अंतर्वेदना को समझती है; हाशिये पर रहने वाले लोगों की आकांक्षाओं को समझना, आदर्शवादिता के पंख के एवं अहिंसा रूपी अस्त्र के साथ उड़ान भरते हुए पत्रकारिता के एक नए मुकाम को हासिल करने की प्रतिबद्धता है ।
माटी माजरा, ऐसी अनकही कहानियों को सार्वजनिक पटल पर लाने को कटिबद्ध है। और ऐसी कहानियां जोकि सुंदर धरा एवं परिदृश्य में आमूलचूल परिवर्तन लाती है ;जैसे चार्ली चैपलिन-अभिनीत फिल्मों में मजाक एवं हँसी, त्रासदी एवं पुनरूद्धार का पुट, दृढ़-ईमानदारी और अनंत सपनों को अपने अंदर समेटते हुए, एक नए जीवन की राह का सृजन करती है ।