इस्लाम धर्म में मदरसों का महत्व 1400 वर्ष पहले से रहा है.वास्तविकता ये है कि इस्लाम धर्म को जानने का रास्ता मदरसे से होकर जाता है. मदरसे में दीनी तालीम पढ़ाई जाती है, जिससे कि लोगों को इस्लाम धर्म के बारे में जानकारी हो सके.
मदरसा एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब पढ़ने का स्थान होता है. इन मदरसों को चलाने के लिए इलाके के लोग जकात , फितरा, दान इकट्ठा कर मदरसा संचालक को देते हैं, जिससे कि वह मदरसा संचालित करता है. इन मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता की अगर बात करें तो प्रत्येक मदरसे में शिक्षक की योग्यता धार्मिक शिक्षा के आधार पर हाफिज, कारी, आलिम, फाजिल ,मुफ्ती की डिग्री होना जरूरी होता है.
मदरसों में छात्रों को इस्लामी शिक्षा दी जाती है. जिसमें मौलवी मुंशी, आमिल,फाजिल, कामिल, कारी,अरबी,फारसी के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के तौर पर उर्दू,हिंदी, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान,विज्ञान, नागरिक शास्त्र और कंप्यूटर विषय विकल्प के तौर पर पढ़ाये जाते हैं.मदरसों पर बहुत गहरी नज़र रखने वाले, मौलाना नुरुल हुदा मिस्बाही गोरखपुर बताते हैं कि मदरसा चलाने के लिए कोई भी मुसलमान जिसके अंदर इस्लाम धर्म का जज्बा हो वह मदरसा चला सकता है.
मदरसा संचालक ने बताया कि बाद में जब मदरसा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाता है तो सरकार द्वारा मदरसे को ऐड दी जाती है. जिससे मदरसे का संचालन चलता है. मदरसे में दीनी और धार्मिक तालीम दी जाती है. मदरसे मे बच्चों को पढ़ाने लिए जो टीचर रखे जाते हैं उनकी योग्यता धार्मिक शिक्षा के आधार पर कम से कम हाफिज, कारी, आलिम की डिग्री होना जरूरी होता है. जिन बच्चों को आधुनिक शिक्षा के तौर पर हिंदी, गणित, अंग्रेजी, विज्ञान, इतिहास की तालीम दी जाती है उसके लिए पढ़ने वाले शिक्षक की योग्यता इंटर होना जरूरी है.
* वर्तमान में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अंतर्गत संचालित प्रदेश के मदरसों की स्थिति इस प्रकार है:-
- तहतानिया (प्राथमिक स्तर) फौकानिया (जू. हाई स्कूल स्तर) 14677
- आलिया (मुशी, मौलवी, आलिम, कामिल, फ़ाज़िल) 4536
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित परीक्षाओं का विवरण इस प्रकार है:-
- मुंशी/मौलवी (समकक्ष हाईस्कूल) (उच्च शिक्षा एवं नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है)
- आलिम (समकक्ष इंटरमीडिएट) (उच्च शिक्षा एवं नियुक्ति के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है)
- कामिल (समकक्ष स्नातक) (उच्च शिक्षा एवं नियुक्ति के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है)
वर्तमान में आलिया स्तर के स्थायी मान्यता प्राप्त अनुदानित मदरसों की कुल संख्या 560 है।
मदरसे का संचालन
परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त मदरसों में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम-2004 के तहत विनियम 2016 में निहित शर्तों/प्रतिबंधों का अनुपालन किया जाता है। कमियां पाए जाने पर निराकरण के लिए नोटिस दिया जाता है। समय-समय पर मदरसे का निरीक्षण भी किया जाता है। कुशल संचालन के लिए सुझाव भी दिये गये हैं. आदेशों की अवहेलना या किसी मानक को पूरा न करने पर मान्यता निलंबित/वापसी भी होती है।
यूपी के इलावा बिहार मदरसा बोर्ड से 4,000 से अधिक मदरसे संबद्ध हैं, जिनमें 1,942 सरकारी सहायता प्राप्त मदरसे शामिल हैं, जिनमें 15 लाख से अधिक छात्र हैं।
इसी प्रकार राजस्थान मदरसा बोर्ड के साथ 3,240 मदरसे पंजीकृत हैं, जिनकी कुल छात्र संख्या 2.35 लाख है।जिनमें माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी हैं।अल्पसंख्यक कार्य विभाग की प्रधान सचिव श्रेया गुहा ने कहा, इनमें से कुछ मानदंडों के आधार पर चुने गए 500 मदरसों को मॉडल मदरसों के रूप में विकसित किया जाएगा।
ऐसे ही मध्य प्रदेश सरकार की एक रिकॉर्ड के मुताबिक, राज्य में पंजीकृत मदरसों की संख्या करीब 2,650 है।
हमारा अधिक फोकस उत्तर प्रदेश के मदरसे होंगे क्योंकि यहां सबसे अधिक मदरसे हैं और सैलरी भी सबसे अधिक है और साथ ही समस्याएं भी अधिक हैं।अगले आर्टिकल में हम अलग अलग राज्यों के मदरसों की स्थिति का आंकलन करने का प्रयत्न करेंगे।
इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक़ आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 26,928 मान्यता प्राप्त मदरसों में लगभग 1.17 लाख शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें 43.52 मिलियन से अधिक छात्र रहते हैं।
संसदीय पैनल ने कहा है कि उपलब्ध बुनियादी ढांचे, शिक्षकों और छात्रों सहित मदरसों के बारे में व्यापक जानकारी के अभाव में मदरसों में नई शिक्षा नीति को लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि केवल 10 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों ने यूडीआईएसई पर विवरण दर्ज किया है।
परिणामस्वरूप, समिति ने मंत्रालय को तीन महीने के भीतर डेटा इकट्ठा करने की सलाह दी थी ताकि मदरसे योजना की सुविधाओं का उपयोग कर सकें।
मदरसा संचालक मसूद आलम नूरी बताते हैं कि मदरसे से जो डिग्रियां बच्चों को दी जाती हैं वह हाफिज की डिग्री होती है, आलिम और कारी की डिग्रियां होती हैं, मुफ्ती की डिग्री होती है, आलिम और फाजिल की डिग्री होती है. लेकिन उस डिग्री को लेकर वह किसी मस्जिद के इमाम बन जाते हैं, किसी मदरसे में उस्ताद या संचालक बन जाते हैं या मुफ्ती व काजी बन जाते हैं. लेकिन अगर उनको सरकारी नौकरियों की तरफ जाना तो फिर वह किसी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेते हैं.
मौलाना नुरुल हुदा मिस्बाही ने बताया कि मदरसे की तालीम हासिल करने के साथ-साथ जो मदरसे यूपी गवर्नमेंट से मान्यता प्राप्त है और वहां के छात्र किसी बड़े एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में दाखिला लेते हैं तो वो आलिम की डिग्री के माध्यम से बीए में एडमिशन लेते हैं और आगे बढ़ते हैं। इसके बाद वह सरकारी नौकरी के योग्य हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि हिंदुस्तान के बहुत से ऐसे बड़े अधिकारी , डॉक्टर , प्रोफेसर, मौजूद हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी की शुरुआत मदरसे की तालीम से ही की थी और वह आज एक आला मुकाम पर मौजूद है.
मौलाना इम्तियाज रूमी असिस्टेंट प्रोफेसर जामिया मिल्लिया दिल्ली,ने बताया कि अब मदरसे के छात्र बड़ी संख्या में सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तेजी से एडमिशन भी ले रहे हैं और उच्च पदों पर भी पहुंच रहे हैं। उनसे पूछने पर कि किन किन यूनिवर्सिटी में अधिक छात्र शिक्षा ले रहे हैं तो इसपर उन्होंने बताया कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली, जामिया हमदर्द नई दिल्ली, जेएनयू नई दिल्ली, मौलाना आजाद हैदराबाद, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़, इग्नू नई दिल्ली, में बड़ी संख्या में मदरसों के छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
मासिक पत्रिका कंजूल ईमान नई दिल्ली के संपादक और मदरसों के हालात पर पैनी नजर रखने वाले मौलाना जफरुद्दीन बरकती से देर तक बात हुई जिसमें उन्होंने कुछ समस्याओं की तरफ ध्यान केंद्रित किया कि मदरसों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन सबसे गंभीर समस्या आर्थिक समस्या है. ये मदरसे जकात, फितरे और दान पर चलते हैं। कुर्बानी की खाल से भी कुछ आमदनी हो जाती थी, लेकिन पिछले दो साल से यह स्रोत बंद है। जहां तक जकात, फितरे और दान का सवाल है तो कुछ फर्जी लोगों के कारण दानदाताओं को भी मूल लाभार्थियों पर संदेह होता है। इसीलिए मदरसों को ऐसी जगहों से ही चंदा मिलता है जहां उनके परिचित होते हैं. वह बताते हैं कि मदरसों को खास तौर पर तीन क्षेत्रों में पैसा खर्च करना पड़ता है। एक छात्रों के भोजन पर, दूसरा शिक्षकों के वेतन पर और तीसरा मदरसा कक्षा और छात्रावास के निर्माण पर। जकात, फितरा आदि की रकम से विद्यार्थियों के खाने-पीने का प्रबंध किया जाता है। वर्ष में एक बार मदरसे की बैठक होती है जिसमें दान दिया जाता है। यह छात्रावासों के निर्माण पर खर्च किया जाता है लेकिन शिक्षकों के वेतन का प्रबंधन करना अधिक कठिन है। यही कारण है कि मदरसे वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दे पाते जो वे देना चाहते हैं।फिर भी इन्ही मदरसों के जहीन छात्र यूनिवर्सिटी का भी रुख कर रहे हैं।
गौरतलब है कि भारत के सभी प्रमुख मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं. यहां देशभर से छात्र धार्मिक शिक्षा के लिए आते हैं। बल्कि मदरसा मंजरे इस्लाम बरेली ,अल जामीअतुल अश्रफिया मुबारकपुर, दारुल उलूम नदवा लखनऊ में विदेशी छात्र भी वैधानिक तरीके से आते रहे हैं।मैं अल जामीअतुल अश्रफिया मुबारकपुर को करीब से जानता हूं कहा सरकार द्वारा शिक्षा के आधुनिकरण से बहुत पहले से ही यह दीनी शिक्षा के इलावा विज्ञान , गणित, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, पॉलिटिकल साइंस, कंप्यूटर आदि की शिक्षा दी जाती रही है अब ऐसे में शिक्षा का आधुनिकरण में अशरफिया जैसे मदरसों को किसी भी दिक्कत का सामना नहीं।
दक्षिण भारत में भी कुछ बड़े मदरसे चल रहे हैं। इसके अलावा बिहार, बंगाल, असम, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में भी कुछ बड़े मदरसे हैं। हालांकि, देशभर के मदरसे इस वक्त आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। यह मदरसों की सबसे बड़ी समस्या है. यही कारण है कि यहां छात्रों की संख्या कम कर रहे हैं। एडमिशन के लिए बड़ी संख्या में विद्यार्थी आते हैं मगर उनमें से बड़ी संख्या को आर्थिक तंगी के कारण वापस कर दिया जाता है ।टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक गत 6 वर्षों में 4 लाख से अधिक मदरसे के छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी।
मौलाना सिद्दीक नूरानी सकाफी मध्य प्रदेश ने कहा कि केरल कालीकट का अल-सकाफा अल-सुन्निया एक आदर्श मदरसा है जो धार्मिक शिक्षा के बाद नियमित व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करता है।ऐसे में देश के अन्य संचालकों को इस तरह के मदरसे अपनाने की आवश्यकता है।
मौलाना जफरुद्दीन बरकाती ने बताया कि लड़कियों के मदरसों की बात की जाए तो वो काफी कम हैं फिर भी जिस अंदाज़ में चल रहे हैं वो सराहनीय कहा जा सकता है मगर वो भी काफी तंगी की शिकार हैं।
मैने अपने स्तर पर मालूम किया तो पता चला कि लड़कियों के मदरसे जनपद महाराजगंज में कई मदरसे संचालित हैं इसके इलावा गोरखपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, मुबारकपुर आजमगढ़, घोसी मऊ, सहारनपुर, मुरादाबाद, लखनऊ, कानपुर आदि क्षेत्रों में संचालित हैं। यहां लड़कियों धार्मिक शिक्षा के साथ साथ विज्ञान, अंग्रेजी, इतिहास ,गणित की भी शिक्षा दी जाती है।
मदरसों की आर्थिक तंगी में एक और झटका
वित्तीय वर्ष 2023-24 से वर्ष 2022-23 के लिए अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का बजट आवंटन 38% कम कर दिया गया। अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति सहित कई छात्रवृत्ति और कौशल विकास योजनाओं में बड़ी धनराशि में कटौती की गई। इस वर्ष योजनाओं को ₹44 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई है, जबकि पिछले वर्ष इसका बजट ₹365 करोड़ था।
2022-23 में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का बजट अनुमान ₹5,020.50 करोड़ था। इस बार मंत्रालय को 3,097 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं. उल्लेख करने के लिए, 2022-23 में मंत्रालय को धन का संशोधित आवंटन ₹2,612.66 करोड़ था।
वित्त मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए अल्पसंख्यकों के लिए प्री-मीट्रिक छात्रवृत्ति के लिए धनराशि में भी ₹900 करोड़ से अधिक की कटौती की है। पिछले बजट में छात्रवृत्ति निधि ₹1,425 करोड़ थी, जो इस वर्ष घटकर ₹433 करोड़ रह गई है।
मदरसों के पाठ्यक्रम को आधुनिकरण करने पर बहुत से मदरसों को समस्याओं का सामना तो करना पड़ा है मगर ये भी सत्य है कि अधिकतर मदरसों में आधुनिक शिक्षा दी जाती रही है।कुछ अध्यापकों ने बताया कि समय पर सैलरी न मिलने पर और अधिक आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।सरकार से अनुरोध है कि कामिल, फाजिल, मुफ्ती को बीए, एमए और पीएचडी के समान डिग्री देने का प्रावधान करे साथ ही मदरसों के लिए अधिक से अधिक बजट आवंटित किया जाए।ताकि मदरसों के छात्रों का भविष्य और प्रज्वलित हो सके और दीन के साथ साथ वर्तमान जीवनधारा में बहुत अच्छे अंदाज में आ सकें ।