Category Archives: संस्कृति

करुक्कू फेम लेखिका बामा को प्रसिद्ध वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार, दलित फिल्मकार पा. रंजीत बोले गैरदलित लेखक-निर्देशक हमारा दर्द समझने में असमर्थ

June 15, 2024 | By Maati Maajra
करुक्कू फेम लेखिका बामा को प्रसिद्ध वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार, दलित फिल्मकार पा. रंजीत बोले गैरदलित लेखक-निर्देशक हमारा दर्द समझने में असमर्थ

करुक्कू फेम लेखिका बामा को पुरस्कृत करते हुए प्रसिद्ध दलित फिल्म निर्माता रंजीत ने कहा कि गैर-दलित लेखक और फिल्म निर्माता दलितों के जीवन को प्रतिबिंबित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्होंने कभी उनके जीवन को समझने की कोशिश नहीं की है….

Dalit Writer Bama receives Verchol Dalit Literary Award 2024 : करुक्कू, संगति और मानुषी जैसी प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों की रचनाकार प्रसिद्ध दलित लेखिका और कवि बामा को 2024 के महत्वपूर्ण वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार से नवाजा गया है। उन्हें यह पुरस्कार सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता पा. रंजीत ने प्रदान किया। पुरस्कार के बतौर उन्हें वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार और ₹1 लाख का नकद पुरस्कार मिला। चेन्नई में वाणम कला महोत्सव 2024 के हिस्से के रूप में साहित्यिक कॉन्क्लेव द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में यह महत्वपूर्ण पुरस्कार प्रदान किया गया। यह उत्सव दलित इतिहास माह के उपलक्ष्य में फिल्म निर्माता पा. रंजीत द्वारा स्थापित नीलम सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आयोजित किया गया था।

इस पुरस्कार समारोह के दौरान अपने जीवन पर एक वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग के बाद बोलते हुए दलित लेखिका बामा ने कहा कि उनका जीवन आसान नहीं था, लेकिन यह कुछ ऐसा था जिसे उन्होंने चुना था, और अपनी पीड़ा को शब्दों में पिरोया।

भारत की पहली दलित हीरोइन पी के रोज़ी जिसकी फिल्म ब्राह्मणवादियों ने नहीं चलने दी थी

April 20, 2024 | By Sushma Tomar
भारत की पहली दलित हीरोइन पी के रोज़ी जिसकी फिल्म ब्राह्मणवादियों ने नहीं चलने दी थी

क्या आपने कभी देखा है कि कोई ब्राह्मण नायिका सिनेमाई पर्दे पर अदाकारी कर रही हो और लोग सिर्फ उसके ब्राह्मण होने की वजह से फिल्म में उसके होने पर आपत्ति जताए… या थिएटर में स्क्रीन ही तोड़ दें। जाहिर सी बात है, बिल्कुल नहीं लेकिन 1930 का दशक ऐसा था जब एक दलित नायिका को ब्राह्मणवादियों कि दकियानूसी सोच के चलते अपना भविष्य दाव पर लगाना पड़ा था।

दलित टाइम्स के कॉलम एससी/एसटी नायक में पढ़िए भारत की पहली दलित हिरोइन P.K. रोज़ी के बारे में.. जो बता रहीं है सुषमा तोमर…

साल 1928 का दौर था जब तथाकथित उच्च कुल की लड़कियां सिनेमा में काम नहीं करती थीं इसी समय केरल की पहली फिल्म बन कर तैयार हुई थी। जिसका नाम था, ‘विगथकुमारन’, जिसे केरल के मशहूर फिल्म मेकर जे.सी डेनियल ने बनाया था। जेसी डेनियल ने फिल्म में नायिका के किरदार के लिए एक दलित महिला को चुना था। हालांकि इसके पीछे भी एक लंबी कहानी है कि एक ऐसे दौर में जब महिलाओं को ही ना के बराबर फिल्मों में काम करने की इजाज़त थी वहाँ दलित महिला को नायिका के रूप कैसे लिया गया ? ये पूरा किस्सा आपको लेख में आगे पढ़ने के लिए मिलेगा लेकिन उससे पहले थोड़ी भूमिका बांधना जरूरी है।

कहते हैं कि सिनेमा समाज का आईना होता है और जो समाज में घटता है वह किसी न किसी रूप में हमें सिनेमा में देखने के लिए मिलता है। लेकिन 7 नवंबर 1928 को इस आईने में जातिवाद का घिनौना चेहरा दिखाई दिया। तमिलनाडु के कैपिटल थिएटर में पी.के. रोज़ी की फिल्म का प्रीमियर होना था। लेकिन फिल्म रिलीज होने से पहले ही आलोचनाओं से घिर गयी। ब्राह्मणवादियों में यह जानते ही रोष पैदा हो गया कि ऊंची जाति की लड़की का किरदार एक दलित लड़की कैसे कर सकती है। इसके बाद थिएटर में और पी. के. रोज़ी के साथ जो हुआ वो वाक्या आपके बदन में भी सिहरन पैदा कर देगा।

कौन थी पी. के रोज़ी :

सर्च इंजन गूगल पर पीके रोज़ी की एक तस्वीर के अलावा कोई भी जानकारी मौजूद नहीं है। इसलिए उनकी निजी जिंदगी की जानकारी दैनिक भास्कर के हवाले से दे रहे हैं। साल 1903 जब भारत में अंग्रेजों की गुलामी के साथ- साथ जातिवाद, छुआछूत और जातिभेद भी था। उस वक्त तिरुवतंपुरम के नंदकोड़े में एक गरीब परिवार में पी.के राजम्मा का जन्म होता है। उनके परिवार में माँ, बाप और एक छोटी बहन थी। छोटी उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ गया और रोज़ी को बचपन में ही कमाने के लिए घर से निकलना पड़ा। घास काट कर घर का गुजारा होता। 1920 में परिवार को सहारा मिला और राजम्मा के चाचा उन्हें अपने साथ ले गए।

1920 का दशक दक्षिण भारत में ईसाई धर्म के फैलाव का था इसी दौरान राजम्मा की माँ ने LMS चर्च के पादरी से दूसरी शादी कर ली। सौतेले पिता ने राजम्मा को ईसाई धर्म स्वीकार करवा दिया। लेकिन रोज़ी माँ के साथ नहीं गयी उन्होंने दादाजी के साथ रहना ही उचित समझा।

छोटी जाति की लड़कियों को ऊंचे सपने देखने का हक नहीं :

चंचल स्वभाव की रोज़ी को नाचने गाने का बड़ा शौक था लेकिन उस वक्त नाचना-गाना सिर्फ दो ही तरह के लोगों को शोभा देता था एक ऊंचे घराने के लोगों को और दूसरा तवायफों को। और रोज़ी इन दोनों में से कोई नहीं थी। इसलिए उसके इस शौक को अच्छा नहीं माना गया। दादाजी ने रोज़ी के नाचने गाने का खूब विरोध किया। लेकिन उसकी लगन देखकर चाचा ने उसे आर्ट स्कूल में भर्ती करवा दिया। रोज़ी ने यहाँ कक्काराशी फोक डांस सीखा।

यह एक ऐसी कला है जिसमें शिव-पार्वती के धरती पर आने की कहानी को डांस और गाने के ज़रिए दिखाया जाता है। दादाजी अब रोज़ी से और नाराज़ हो गए और उन्होंने रोज़ी को स्कूल जाने से रोका लेकिन रोज़ी नहीं रूकी। उसने अब एक ड्रामा कंपनी भी जॉइन कर ली थी। समाज को अब ये नागवार गुज़रा, इस पर आपत्ति जताई गयी और हार कर दादाजी ने रोज़ी को घर से निकाल दिया। रोज़ी को ड्रामा कंपनी के लोगों के साथ ही रहने को मजबूर होना पड़ा।

राजम्मा से रोज़ी बनने की यह थी कहानी :

समाज और परिवार की परवाह नहीं करने वाली अपने सपनों को अहमियत देने वाली राजम्मा को रोज़ी नाम कैसे मिला इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। केरल के मशहूर फिल्म मेकर जे.सी. डेनियल अपनी फिल्म ‘विगथकुमारन’ बना रहे थे। फिल्म के लिए मुंबई से मिस लाला को फिल्म की हीरोइन बनाने के लिए बुलाया गया। लेकिन अपने हिसाब से रहन-सहन के इंतज़ाम ना पाकर मिस लाला ने फिल्म छोड़ दी। जे. सी. डेनियल को अब फिल्म के लिए एक नयी हीरोइन की तलाश थी। डेनियल के दोस्त जॉनसन ने डेनियल के सामने राजम्मा को लाकर खड़ा कर दिया। डेनियल की मजबूरी थी इसलिए उन्होंने राजम्मा को हीरोइन बना लिया लेकिन डेनियल राजम्मा के नाम को लेकर आश्वस्त नहीं थे। वह चाहते थे कि फिल्म की हीरोइन का नाम मिल लाला जैसा हो इसलिए उन्होंने पी.के.राजम्मा को बना दिया पी.के रोज़ी।

हीरोइन बनी लेकिन छुआछूत का करना पड़ा सामना :

रोज़ी को फिल्म के लिए रोज 5 रुपए दिए जाते। 10 दिन तक चली शूटिंग में रोज़ी को पूरे 50 रुपए मिले। लेकिन शूटिंग के दौरान सेट पर छुआछूत से रोज़ी बच ना सकीं। उन्हें सेट पर कोई भी चीज छूने की मनाही थी। यहाँ तक की सेट पर बाकियो के लिए जो खाना आता था रोज़ी को वो भी खाने के लिए नहीं मिलता। रोज़ी अपना खाना घर से लेकर आती और अकेले बैठकर खाती। अखबारों में जब यह खबर छपी की जे.सी डेनियल की फिल्म की हिरोइन एक दलित लड़की पी.के. रोज़ी है और जो फिल्म में एक ऊंची जाति की लड़की का किरदार निभा रही है। जातिवादियों को ये रास नहीं आया। लेकिन 10 दिन के भीतर फिल्म बनकर तैयार हो गयी।

दलित लड़की के साथ बैठ कर फिल्म नहीं देखेंगे :

फिल्म बनकर तैयार थी उसका प्रीमियर होने वाला था। डेनियल ने अभिनेत्री रोज़ी को इस प्रीमियर शो के लिए आमंत्रित नहीं किया था। मुख्य अतिथि गोविंद पिल्लई थे जो कि पेशे से एक प्रसिद्ध वकील थे और फिल्म का इनॉग्रेशन करने वाले थे। पर इस सबसे अनजान रोज़ी, एक मित्र के साथ ये शो देखने पहुंच गईं। रोज़ी को देखते ही गोविंद पिल्लई ने नाराजगी जताते हुए कहा कि जब तक रोज़ी वहां रहेगी वह इनॉग्रेशन नहीं करेंगे।

वह एक दलित लड़की के साथ बैठ कर फिल्म नहीं देखेंगे. डेनियल ने रोज़ी से आग्रह किया कि वो बाहर चली जाए और अगला शो देखने थिएटर में वापस आए। रोज़ी मान गईं और थिएटर से चली गई। अपनी ही फिल्म को देखने के लिए रोज़ी बाहर खड़ी होकर इंतज़ार करती रही।

प्रीमियर पर जो हुआ वो पी.के रोज़ी भुला नहीं पाई :

जैसे तैसे इनॉग्रेशन हुआ और फिल्म का प्रीमियर शुरू हुआ। लेकिन फिल्म में दलित लड़की के होने पर गुस्साए लोग वो सीन देखकर और आग बबूला हो गए जिसमें उच्च जाति का हीरो दलित हीरोइन के बालों में लगा फूल चूम रहा था। बस फिर क्या था इस एक सीन ने उन लोगों के मन में लगी आग में घी डालने का काम किया और उच्च जाति के दर्शकों ने थिएटर की स्क्रीन तोड़ना शुरू कर दिया। थिएटर को आग के हवाले कर दिया गया।

इतना ही नहीं भीड़ रोज़ी के घर तक भी पहुंच गई और उसके घर पर भी पत्थरबाजी की गई। लोगो ने रोज़ी के घर को आग लगा दी। इसके बाद 25 साल की रोज़ी ने कभी कोई फिल्म नहीं की क्योंकि अपनी पहली फिल्म के किरदार के चलते उन्हें अपना सब कुछ गवाना पड़ा। रोज़ी ने अपना घर छोड़ दिया। सिनेमा की दुनिया से गायब हो गईं। पी.के रोज़ी को दलित होने की एक भारी कीमत चुकानी पड़ी. सिनेमा में नायिका के बिना नायक अधूरा होता है लेकिन इस घटना ने सिनेमा में किरदारों की भी जातियां तय कर दी थी। इस जातिवादी मानसिकता ने कला के बदले कलाकार की जाति को महत्व देना ज्यादा जरूरी समझा था।

गुमनाम हो गयी पहली दलित नायिका :

थिएटर और रोज़ी के घर में लगी आग ने सब कुछ राख कर दिया था। रोज़ी का सपना भी और उसकी पहचान भी। रोज़ी को शहर छोड़कर भागना पड़ा। रोज़ी ने जिस बस ड्राइवर केसावा से मदद मांगी वो उंची जाति का था। केसावा रोज़ी को तमिलनाडु के नागरकोइल ले आया। दोनों ने शादी कर ली। केसावा के परिवार ने दलित बहु को अपनाने से मना कर दिया। केसावा और रोज़ी ने अपनी अलग जिंदगी शुरू की।

दोनों की दो बेटियां हुई लेकिन रोज़ी ने कभी अपना इतिहास नहीं बताया। ये भी नहीं की मलयाली की पहली फीचर फिल्म “विगताकुमारत” की वो पहली दलित हीरोइन थी। शादी के बाद रोज़ी, राजम्मा पिल्लई बन गयी और गुमनामी में जिंदगी बिताने लगी। उनकी सिर्फ एक तस्वीर के अलावा गूगल पर ज्यादा जानकारी मौजूद नहीं है। 2023 में जब गूगल ने उनका डूडल बनाया तो एक बार फिर भारत में फिल्म, दलित हीरोइन रोज़ी और जातिवाद पर चर्चा शुरू हुई।

कुछ मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि दलित लड़की को फिल्म में नायिका के तौर पर प्रदर्शित करने का खामियाजा जे.सी.डेनियल को भी उठाना पड़ा। अपनी जमीन बेचकर जो फिल्म बनाई थी उसके प्रीमियर पर थिएटर जला दिए गए। इसके बाद कर्ज़ में डूबे जे.सी. डेनियल ने कोई फिल्म नहीं बनाई और अपनी पूरी जिंदगी डेंटिस्ट बनकर काटी।

(Dalit Times)

दलित फिल्म अभिनेता धनुष जो अपनी दमदार एक्टिंग से उठा रहे पीड़ितों-दमितों-दलितों-वंचितों की आवाज

April 02, 2024 | By Maati Maajra
दलित फिल्म अभिनेता धनुष जो अपनी दमदार एक्टिंग से उठा रहे पीड़ितों-दमितों-दलितों-वंचितों की आवाज

अगर जमीन होगी, तो कोई भी छीन लेगा. पैसा होगा, कोई भी लूट लेगा.. लेकिन अगर पढ़ा-लिखा होगा, तो कोई भी तुझसे कुछ नहीं छीन पाएगा.. अगर अन्याय से जीतना है तो पढ़. पढ़-लिखकर एक ताकतवर इंसान बन. नफ़रत हमें तोड़ती है, प्यार जोड़ता है. हम एक ही मिट्टी के बने हैं, लेकिन जातिवाद ने अलग कर दिया, हम सबको इस सोच से उबरना होगा…

Who is Dalit Actor Dhanush : आज हिंदी सिनेमा जगत में साउथ की रिमेक फिल्मों की धूम मची हुई है। उसी तरह आज हिंदी सिनेमा में साउथ के अभिनेता भी अपने अभिनय से काफी चर्चित हो रहे हैं और अपने दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। एक ऐसे ही साउथ के दलित अभिनेता “वेंकटेश प्रभु कस्तूरी राजा” जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने अभिनय से धूम मचा रखी है, जिन्हें आज सिनेमा जगत में “धनुष” के नाम से जाना जाता है।

व्यक्तिगत जानकारी

एक्टर धनुष अनुसूचित जाति (SC) जाति से संबंध रखते हैं। अपने करियर में धनुष ने एक्टिंग के अलावा गायक, निर्देशक, निर्माता, गीतकार, पार्श्व गायक और तमिल सिनेमा में अभिनेता की भूमिका निभाई है। धनुष का जन्म 28 जुलाई 1983 को मद्रास तमिलनाडु में हुआ था। इनके पिता का नाम कस्तूरी राजा है जो तमिल फिल्म निर्देशक और निर्माता है। इनकी माता का नाम विजयलक्ष्मी है। धनुष के भाई का नाम सेल्वाराघवन है जो एक निर्देशक हैं। धनुष की दो बहने भी हैं जिनका नाम विमलगीथा और कार्थिगा कार्तिक है। धनुष की शादी सुपरस्टार रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से हुई इनके दो बच्चें भी हैं जिनका नाम यात्रा और लिंगा है।

शेफ बनना चाहते थे

ऐसा कहा जाता है कि धनुष एक्टर नहीं बनना चाहते थे उनका सपना होटल मैनेजमेंट करके शेफ बनना था लेकिन उनके भाई ने उन्हें एक्टर बनने के लिए प्रेरित किया था। “वेंकटेश प्रभु कस्तूरी राजा” ने अपना धनुष नाम 1995 की फिल्म “कुरुथिपुनल” से प्रेरित होकर रखा था। धनुष ने सिनेमा में अपने कैरियर की शुरुआत साल 2002 में अपने पिता द्वारा निर्देशित फिल्म “थुल्लुवाधो इलामाई” से की थी। साल 2003 में धनुष ने अपने भाई सेल्वाराघवन द्वारा निर्देशित फिल्म “काधल कोंडेइन” में काम किया था। इस फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया था जिसकी वजह से एक बड़ी व्यावसायिक सफ़लता हासिल हुई थी। इस फ़िल्म के बाद धनुष को तमिल सिनेमा में सफ़लता हासिल हुई थी। “काधल कोंडेइन” फिल्म ने धनुष को सर्वश्रेष्ठ तमिल अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए पहला नामांकन भी दिलवाया। इसके बाद धनुष ने अनेक फिल्मों में काम किया।

“कुंदन” के किरदार से  हिंदी फिल्मों में पहचान

तमिल फिल्मों के अलावा हिंदी फिल्मों में भी धनुष ने अपने अभिनय का जलवा बिखेरा था। हिंदी सिनेमा में धनुष ने “रांझणा” फिल्म से शुरुआत की थी। रांझणा फिल्म में धनुष ने कुंदन का किरदार निभाया था और इस किरदार को दर्शकों ने काफी पसंद किया था। इस फिल्म में धनुष ने कुंदन के किरदार से सभी का मनोरंजन किया और लोगों को भावुक भी कर दिया था। रांझणा फिल्म से एक बार फिर धनुष सभी के दिलों पर छा गए थे।

“वाय दिस कोलावेरी डी” से अंतर्राष्ट्रीय पहचान

एक गायक के तौर पर भी धनुष ने लोगों के दिलों में जगह बना ली थी। धनुष को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब मिली जब उनका गाया हुआ गाना “वाय दिस कोलावेरी डी” यूट्यूब पर छा गया था। इस गाने ने सभी का मनोरंजन किया था बच्चे हो या बड़े हर किसी की जुबान पर ये गाना चढ़ा हुआ था और इस गाने के बाद ज़्यादातर लोग उन्हें जानने लगे थे। धनुष को साल 2019 की तमिल फिल्म “असुरन” के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए 67वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

अपनी फिल्मों के ज़रिये दलितों के मुद्दों को उठाया

आपको बता दें कि एक्टर धनुष दलित समुदाय से आते हैं अपनी फिल्मों के ज़रिये उन्होंने दलितों के मुद्दों को भी उठाया है। “असुरन” फिल्म में धनुष ने अभिनय किया था इस फिल्म के अंतिम सीन में फिल्म का नायक धनुष अपने बेटे से कहते हैं कि “अगर जमीन होगी, तो कोई भी छीन लेगा. पैसा होगा, कोई भी लूट लेगा.. लेकिन अगर पढ़ा-लिखा होगा, तो कोई भी तुझसे कुछ नहीं छीन पाएगा.. अगर अन्याय से जीतना है तो पढ़. पढ़-लिखकर एक ताकतवर इंसान बन. नफ़रत हमें तोड़ती है, प्यार जोड़ता है. हम एक ही मिट्टी के बने हैं, लेकिन जातिवाद ने अलग कर दिया। हम सबको इस सोच से उबरना होगा”.  इस फिल्म में छोटी छोटी बात पर दलितों के साथ होने वाले उत्पीड़न को दिखाया गया है जैसे किस तरह एक दलित लड़की का सिर्फ चप्पल पहन लेने से गांव के कथित ऊंची जात वालों को इतना चुभता है कि उसके सिर पर वही चप्पल रखवाकर उसे पीटते हुए ले जाया जाता है। इस फिल्म में ये भी दिखाया गया है कि जब दलित अपनी जमीन के लिए आंदोलन करते हैं ते कैसे ऊंची जाति के लोग उनके घरों को जला देते हें।

“समाज सेवक” के रुप में धनुष

ऐसा कहा जाता है कि धनुष ने साल 2015 में दक्षिण भारत में बाढ़ और बारिश से प्रभावित लोगों को 5 लाख रुपये दान दिया था। आत्महत्या करने वाले 125 किसानों के परिवार को 50,000 रुपये की सहायता की थी। अगस्त 2013 में धनुष को पर्फ़ेटी इंडिया लिमिटेड ने सेंटर फ्रेश च्यूइंगम के लिए अपना ब्रांड एंबेसडर के रुप में घोषित किया था। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने साल 2012 में अर्थ आवर का समर्थन करने के लिए WWF INDIA के साथ काम किया था।

(Dalit times)