Category Archives: स्वास्थ्य

NHFS Report: जातीय भेदभाव और शिक्षा की कमी से दलित-आदिवासी महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति सबसे खराब

September 22, 2024 | By Maati Maajra
NHFS Report: जातीय भेदभाव और शिक्षा की कमी से दलित-आदिवासी महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति सबसे खराब

NHFS की रिपोर्ट के अनुसार, दलित महिलाओं की औसत आयु गरीबी, स्वच्छता की कमी और कुपोषण के कारण सवर्ण महिलाओं से 14.6 साल कम है, जहां 76.7% को बीमार होने पर इलाज नहीं मिलता। रिपोर्ट जातीय भेदभाव और शिक्षा की कमी को इन असमानताओं का प्रमुख कारण बताती है।

Health: दलितों के खिलाफ हिंसा का विषय अक्सर समाचारों में सुर्खियाँ बनता है, लेकिन इसके साथ ही दलितों की स्वास्थ्य संबंधी स्थिति भी गंभीर चिंता का विषय है। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) की रिपोर्ट के अनुसार, दलितों को स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके हेल्थकेयर इंडेक्स भी काफी पिछड़े हुए हैं।

दलित महिलाएं कम उम्र में मर जाती हैं

नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) की रिपोर्ट ने दलित महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवनकाल पर गंभीर चिंताओं को उजागर किया है। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) की रिपोर्ट और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दलित महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। NHFS-4 की रिपोर्ट में यह पाया गया है कि दलित महिलाओं की औसत आयु बाकी जातियों की महिलाओं से 14.6 साल कम है। जहां दलित महिलाओं की औसत आयु केवल 39.5 साल है, वहीं सवर्ण जातियों की महिलाओं की औसत आयु 54.1 साल है। बता दें, फरवरी 2018 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने भी यह तथ्य सामने रखा था कि भारत में महिलाओं की आयु जाति पर निर्भर करती है।

कारण :

रिपोर्ट के अनुसार, दलित महिलाओं की कम आयु का मुख्य कारण गरीबी, स्वच्छता की कमी, पानी की अनुपलब्धता, कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। गरीबी के कारण दलित महिलाओं के पास स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित होती है, जिससे वे गंभीर बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होती हैं। स्वच्छता की कमी और पानी की अनुपलब्धता भी उनकी स्वास्थ्य स्थिति को प्रभावित करती है, जिससे वे संक्रामक रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। कुपोषण भी एक बड़ा कारक है, जो उनकी सामान्य स्वास्थ्य स्थिति और जीवनकाल को कम कर देता है।

महिलाओं को बीमार पड़ने पर इलाज उपलब्ध नहीं होता

नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS) की रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं की सबसे बड़ी कमी का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक, 76.7% आदिवासी महिलाओं को बीमार पड़ने पर इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है, जबकि 70.4% दलित महिलाओं के लिए भी यही स्थिति बनी हुई है। इसके विपरीत, अन्य जातियों की तुलना में ओबीसी महिलाओं में 66.7% और सवर्ण महिलाओं में 61.3% को बीमार होने पर बुनियादी इलाज की सुविधाएं नहीं मिलतीं।

दलित महिलाएं अनीमिया की शिकार

इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 25-49 वर्ष की उम्र की 55.9% दलित महिलाएं अनीमिया से प्रभावित हैं। यह आंकड़ा देश भर की महिलाओं में अनीमिया की सामान्य दर का एक गंभीर संकेतक है, जो सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को स्पष्ट करता है। अनीमिया और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण दलित महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल की कमी और चिकित्सा सुविधाओं का अभाव झेलना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, प्रेग्नेंसी के दौरान भी दलित और आदिवासी महिलाओं को आवश्यक मेडिकल सुविधाएं प्राप्त नहीं होतीं, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति और भी बिगड़ जाती है।

रिपोर्ट ने स्पष्ट किया दलितों के प्रति भेदभाव है जारी

NHFS-4 की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दलित महिलाओं की स्वास्थ्य समस्याएं और जीवनकाल में अंतर, भारत में जातीय और आर्थिक विषमताओं का एक गंभीर परिणाम हैं। यह रिपोर्ट एक स्पष्ट संकेत है कि समाज में असमानता और भेदभाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि सभी महिलाओं को समान स्वास्थ्य सुविधाएं और जीवन की गुणवत्ता मिल सके।

भारतीय थाली से लगातार घट रहे हैं पोषक तत्व, देश के 67 फीसदी बच्चों और 57 फीसदी मह‍िलाओं में खून की कमी

June 15, 2024 | By Maati Maajra
भारतीय थाली से लगातार घट रहे हैं पोषक तत्व, देश के 67 फीसदी बच्चों और 57 फीसदी मह‍िलाओं में खून की कमी

आज़ादी के वक्त देश में जो खाद्यान का उत्पादन 50 मिलियन टन था, अब बढ़कर 325 म‍िल‍ियन टन हो गया है। इसके बावजूद पोषण सुरक्षा की चुनौती हमारे सामने खड़ी है, क्योंक‍ि कृष‍ि उत्पादों की गुणवत्ता घट रही है, अध‍िकांश अनाजों, दालों और फलों-सब्ज‍ियों में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा कम हो रही है, जबक‍ि वसा की मात्रा बढ़ रही है….

Malnutrition problem in India : भारत सरकार के वर‍िष्ठ कृष‍ि वैज्ञान‍िक डॉ. एम मोहंती ने कहा क‍ि अगर जमीन में क‍िसी भी माइक्रो न्यूट्र‍िएंट की कमी है तो उसका असर कृष‍ि उपज पर भी पड़ेगा, इसल‍िए रासायन‍िक उर्वरकों का संतुल‍ित इस्तेमाल करें। आप जहां खेती करते हैं उस खेत में ज‍िस चीज की कमी है केवल उसे ही डाल‍िए। यह भी ध्यान रखने की बात है क‍ि हर तरह की म‍िट्टी में एक ही तरह का ट्रीटमेंट काम नहीं करता, म‍िट्टी क‍िस प्रकार की है उसके ह‍िसाब से उसका ट्रीटमेंट होना चाह‍िए।

शरीर में क्यों हो रही है आयरन की कमी

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट (NIFTEM) की प्रोफेसर दीप्त‍ि गुलाटी कहती हैं क‍ि देश के 67 फीसदी बच्चों और 57 फीसदी मह‍िलाओं में खून की कमी है, क्योंक‍ि हमारे भोजन में आयरन की कमी है।

खून की कमी या एनिमिया की समस्या भारत (anemia in Indian population) में कितनी गम्भीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में 5 वर्ष से छोटे बच्चों में से लगभग 67 फीसदी बच्चे एनिमिक हैं। पांचवे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (5th round of National Family Health Survey) में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके अनुसार देश में 5 वर्ष से छोटे बच्चे, किशोर में लड़के-लड़कियों और गर्भवती महिलाओं में एनिमिया के मामले सबसे अधिक पाए गए हैं। ये सभी आयु वर्ग एनिमिया से सबसे अधिक प्रभावित पाए गए हैं। इस सर्वे रिपोर्ट के नुसार, 6-59 महीने के आयुवर्ग के 67 प्रतिशत बच्चे एनिमिया से पीड़ित हैं। वहीं, साल 2015-16 में कराए गए पिछले सर्वे में यह आंकडा 58.6 % था। 57 प्रतिशत महिलाओं को एनिमिया से पीड़ित बताया गया जबकि, साल 2015-16 में 53 प्रतिशत महिलाएं एनिमिक पायी गयीं थीं। वहीं, वयस्कों की बात की जाए 15-49 आयुवर्ग के 25 प्रतिशत पुरुषों में एनिमिया की स्थिति देखी गयी।

मिट्टी में ज‍िंक और सल्फर की भारी कमी

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय में भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी उर्वरकों का संतुल‍ित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। रासायन‍िक खादों के इस्तेमाल के असंतुलन ने जमीन में पोषक तत्वों की कमी कर दी है। इस समय देश की 40 फीसदी म‍िट्टी में ज‍िंक की कमी है, जबक‍ि 80 फीसदी म‍िट्टी में सल्फर की कमी है। इस समय देश में सालाना 12 से 13 लाख टन ज‍िंक की आवश्यकता है, जबक‍ि 2 लाख टन का ही इस्तेमाल हो रहा है। इसकी जगह पर नाइट्रोजन का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है।

कृष‍ि उपज में कम हो रहे सूक्ष्म पोषक तत्व

आज़ादी के वक्त देश में जो खाद्यान का उत्पादन 50 मिलियन टन था, अब बढ़कर 325 म‍िल‍ियन टन हो गया है। इसके बावजूद पोषण सुरक्षा की चुनौती हमारे सामने खड़ी है, क्योंक‍ि कृष‍ि उत्पादों की गुणवत्ता घट रही है। अध‍िकांश अनाजों, दालों और फलों-सब्ज‍ियों में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा कम हो रही है, जबक‍ि वसा की मात्रा बढ़ रही है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाली हान‍ि भारत की जीडीपी का एक फीसदी है। क‍िसान नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही अध‍िक इस्तेमाल करते हैं, क्योंक‍ि इसी पर सब्स‍िडी है। खाद इस्तेमाल के इस पैटर्न को बदलने की जरूरत है।

यूर‍िया के अंधाधुंध इस्तेमाल से बढ़ी द‍िक्कतें

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस बाना कहते हैं क‍ि खेती को 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है, लेक‍िन दुर्भाग्य से हम नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। इससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है। क‍िसानों को जब भी उत्पादन कम लगता है तो वो खेती में और नाइट्रोजन यानी यूर‍िया झोंक देते हैं। एक तरह से जमीन को यूर‍िया का नशा द‍िया है।

एमएसपी कमेटी और क्रॉप डायवर्स‍िफिकेशन कमेटी का मानना है क‍ि खेती में स‍िर्फ नाइट्रोजन और फास्फोरस डालने से फसलों की उत्पादकता कम हुई है। स्वायल हेल्थ, प्लांट हेल्थ, एन‍िमल हेल्थ और ह्यूमन हेल्थ सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए क्रॉप डायवर्स‍िफिकेशन आज देश की जरूरत है।

अमेरिका और यूरोपीय यून‍ियन के बाद भारत तीसरा ऐसा देश बन चुका है, जिसने अपने यहां नाइट्रोजन का पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन किया है। इंडियन नाइट्रोजन ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि है। पिछले पांच दशक में हर भारतीय किसान ने औसतन 6,000 किलो से अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया है।

पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो जमीन में नाइट्रोजन युक्त यूरिया के बहुत अधिक मात्रा में अप्राकृत‍िक रूप से घुलने पर म‍िट्टी की कार्बन मात्रा कम हो जाती है। यूरिया के बहुत ज्यादा इस्तेमाल की वजह से ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भूजल में नाइट्रेट की मौजूदगी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत अधिक म‍िली है। हरियाणा में यह सर्वाधिक 99.5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है, जबकि डब्ल्यूएचओ का निर्धारित मानक 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है। नाइट्रेट पानी को विषाक्त बना रहा है। भोजन अथवा जल में नाइट्रेट की ज्यादा मात्रा कैंसर उत्पन्न करने में सहायक मानी जाती है।

(Dalit Times)

वायु प्रदूषण कर रहा बच्चियों में पहली माहवारी की उम्र को प्रभावित, बना रहता है हृदय रोग-शुगर और कैंसर का खतरा

April 20, 2024 | By Rakhi Gangwar
वायु प्रदूषण कर रहा बच्चियों में पहली माहवारी की उम्र को प्रभावित, बना रहता है हृदय रोग-शुगर और कैंसर का खतरा

माहवारी से जुड़ी इन जटिलताओं के चलते कई बार हमारी बेटियां स्कूल जाना तक बंद कर देती हैं। कारण है शर्म, नैपकिन चेंज करने के लिए सही और साफ जगह के न होने की समस्या, दर्द, दाग लगने का डर, पैड का निस्तारण…. राखी गंगवार की टिप्पणी

Women’s health and Air pollution: सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन अमेरिका में एमोरी यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने और लड़कियों को पहली बार मासिक धर्म होने की उम्र के बीच एक संबंध पाया है।

यह शोध एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है और इसके अंतर्गत पूरे अमेरिका में 5,200 से अधिक लड़कियों का डेटा एकत्र किया गया। इस डेटा की एनालिसिस में पाया गया कि जिन लड़कियों का बचपन सूक्ष्म कणों वाली प्रदूषित हवा में बीता, उनकी पहली माहवारी जल्दी हुई।

विज्ञान की नज़र से बात करें तो जिन लड़कियों में मासिक धर्म कम उम्र में शुरू होता है, उनमें आगे चल के अपने जीवनकाल में कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इन बीमारियों में हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह और कुछ प्रकार के कैंसर शामिल हैं।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एमोरी विश्वविद्यालय में एपीडेमिओलोजी या महामारी विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध की वरिष्ठ लेखक, ऑड्रे गास्किन कहती हैं, “इस विषय पर और शोध की ज़रूरत है लेकिन फिलहाल ऐसा लगता है कि वायु प्रदूषण प्रजनन विकास की दशा और दिशा निर्धारित कर रहा है।” आगे इस विषय पर चिंतन करें तो समझ आता है कि क्योंकि वायु प्रदूषण का सीधा रिश्ता जलवायु प्रदूषण से है, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि बदलती जलवायु की भेंट बच्चियों का बचपन और स्वास्थ्य भी चढ़ रहा है।

दरअसल वायु प्रदूषण के कारण वातावरण का तापमान बढ़ता है और ग्लोबल वार्मिंग होती है, जिसके चलते जलवायु में परिवर्तन होता है। वैसे कहने को तो जलवायु परिवर्तन एक स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इसकी आग को धधका मनुष्य ही रहा है। सामान्यतः जलवायु में परिवर्तन कई वर्षों में धीरे धीरे होता है। लेकिन इंसानी गतिविधियों, जैसे पेड़ पौधों की लगातार कटाई, गाड़ियों का धुआँ वगैरह, के चलते इसकी गति बढ्ने लगी है। वायु प्रदूषण पर लगाम लगाना मुश्किल हो रहा है और इसके हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव साफ दिख रहे हैं।

बात अगर महिलाओं के स्वास्थ्य की करें, खासकर माहवारी के उन कठिन दिनों की करें, तो पता चलता है कि एक तो न सिर्फ माहवारी कम उम्र में शुरू हो रही है, बल्कि उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ भी महिलाओं को उसी अनुपात में परेशान कर रही हैं। शरीर की साधारण बीमारियाँ या कष्टों की चर्चा तो हम सार्वजनिक रूप में कर लेते हैं, लेकिन माहवारी के दर्द, अनियमितता, घबराहट, संकुचन आदि किसी को बता नहीं पाते।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए और एक महिला के नज़रिये से दीपशिखा, जो कि एक अध्यापिका हैं, बताती हैं, “सर्दियों के कठिन दिनों में दर्द अधिक होता है क्योंकि इस मौसम में शारीरिक गतिविधियां थोड़ी कम होती हैं जिससे ब्लड सर्कुलेशन की स्पीड कुछ कम हो जाती है। इसी वजह से सर्दियों में गर्म चीज़े खाने पीने को कहा जाता है। सर्दियों में प्यास भी कम लगती है और पानी कम पीने से मासिक धर्म के दौरान कई तरह की परेशानी होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब सर्दियाँ भी असमय हो रही हैं और तीव्र भी हो रही हैं। उसी हिसाब से माहवारी की परेशानियाँ भी बढ़ती हैं। इसीलिए जलवायु परिवर्तन की गति को कम करना एक चाहत नहीं, ज़रूरत है।”

एक सर्वे से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती हुई गर्मी में भी अगर मासिक धर्म के दौरान शरीर को हाइड्रेट न रखने से अन्य कई तरह की बीमारी होने का डर रहता है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों की किशोरियों और महिलाओं को जागरूक करना बहुत जरूरी हो जाता है जिससे कि वह शर्म और झिझक की वजह से जाने अनजाने कोई गंभीर बीमारी को जन्म ना दें, क्योंकि कुछ गांव में किए गए सर्वे से पता चला कि सिर्फ 10% ग्रामीण महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं। ध्यान रहे, महावरी में गंदे कपड़े के प्रयोग से संक्रमण होने का डर बना रहता है।

माहवारी से जुड़ी इन जटिलताओं के चलते कई बार हमारी बेटियां स्कूल जाना तक बंद कर देती हैं। कारण है शर्म, नैपकिन चेंज करने के लिए सही और साफ जगह के न होने की समस्या, दर्द, दाग लगने का डर, पैड का निस्तारण आदि। महिलाओं को इन दिनों बेहद साफ सफाई रखनी चाहिए साथ ही बेटियों को जागरूक करना चाहिए उनके खान पान का ध्यान रखते हुए संतुलित आहार जरूरी है।

वैसे तो स्वच्छता को लेकर अब स्कूलों में और ग्रामीण क्षेत्रों में भी सरकार के द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी अभी जागरूकता की कमी ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलती है। अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि अब, जब जलवायु परिवर्तन बच्चियों के मासिक चक्र तक पर असर डाल रहा है और उनके स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक परिणाम डाल रहा है, तब यह बेहद ज़रूरी है कि माहवारी से जुड़े जागरूकता कार्यक्रमों में जलवायु परिवर्तन कि भूमिका पर चर्चा भी हो।

अब यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी बच्चियों के बेहतर कल के लिए आज जलवायु परिवर्तन की गति पर लगाम लगाएँ। क्योंकि त्वरित जलवायु कार्यवाही अब नहीं तो कब?

(लेखिका बरेली एक प्राथमिक विद्यालय में अध्यापिका हैं और निजी स्तर पर किशोरियों और महिलाओं के लिए माहवारी से जुड़ी जागरूकता के लिए एक सेनीटरी पैड बैंक चलाती हैं।)

आप रात को पर्याप्त नींद पूरी करते हैं?

March 08, 2024 | By Maati Maajra
आप रात को पर्याप्त नींद पूरी करते हैं?

आप रात को पर्याप्त (वयस्कों के लिए 7 से 9 घंटे) नींद पूरी करते हैं तो इससे आपकी सीखने की क्षमता, स्मृति, मूड और हृदय का स्वास्थ्य बेहतर होगा और साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर रहेगी….

कोरोना के बाद से सबसे सवाल आज मुंह बाये खड़ा है कि आखिर हम अपनी जीवनचर्या तय कैसे करें! कोरोना काल के बाद से हमारे पेशेवर जीवन में काफी अड़चनें आ गई हैं और हम में से अधिकांश लोग घरों से काम कर रहे हैं, इसके बावजूद यह जरूरी है कि हम अपने लिए एक रूटीन तय करें और उस पर कायम रहें। दिनचर्या सुनिश्चित हो तो इससे तनाव घटता है और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।आपके रुटीन में बच्चों को उनकी पढ़ाई में मदद करना, घर से ऑफिस के काम पूरे करना, खाना बनाना, घर के दूसरे काम करना और आसन, व्यायाम, प्रणायाम आदि स्वास्थ्य संबंधी उपाय भी शामिल हों तो बेहतर है।

स्वास्थ्यकर भोजन करें और खाने का समय निश्चित रखें

स्वस्थ शरीर के लिए स्वास्थ्यकर भोजन बहुत महत्वपूर्ण है। चीनीयुक्त पेय पदार्थों की बजाय अधिक से अधिक पानी का सेवन करें, अपने भोजन में सोडियम और नमक का उपयोग घटाएं। भोजन कम घी, तेल और बटर से पकाएं। ज्यादा फैट वाले मीट की बजाय सीफूड खाएं, ज्यादा से ज्यादा सब्जी और फल खाएं। घर पर रहने की वजह से आपके खान-पान पर भी असर पड़ सकता है। शोध बताते हैं कि अनियमित और असमय भोजन करने से आपके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। घर पर रहते हुए, आपको सलाह दी जाती है कि अपने भोजन की नियमितता बनाए रखें।

अपनी नींद रोज़ पूरी करें

नियमित रूप से आप जितना सोते थे, उसे जरूर पूरा करने की कोशिश करें, क्योंकि पर्याप्त नींद बहुत जरूरी है। हर रोज के लिए सोने का एक सामान्य समय और उठने का समय तय रखें। इससे आप बेहतर रूप से नींद पूरी कर पाएंगे और सुबह उठते हुए तरो-ताजा महसूस करेंगे। साक्ष्य बताते हैं कि जो लोग नींद पूरी नहीं करते उनको ज्यादा मानसिक और शारीरिक समस्याएं होती हैं। नींद की कमी से आपकी मौजूदा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ सकती हैं। अगर आप रात को पर्याप्त (वयस्कों के लिए 7 से 9 घंटे) नींद पूरी करते हैं तो इससे आपकी सीखने की क्षमता, स्मृति, मूड और हृदय का स्वास्थ्य बेहतर होगा और साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर रहेगी।

नियमित व्यायाम और योग करें

इाप घरों में रहकर काम जरूर कर रहे हैं, लेकिन सक्रिय रहना और शरीरिक गतिविधियों को जारी रखना बहुत जरूरी है। व्यायाम और योग से आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही बेहतर हो सकता है। कई व्यायाम ऐसे हैं जो आप आसानी से घर के अंदर कर सकते हैं, जैसे एक ही जगह पर खड़े-खड़े उछलना, दंड बैठक या पुश-अप। या फिर घर के अंदर एक जगह पर बैठे रहने की बजाय कोशिश कीजिए कि कुछ-कुछ देर अंदर सीमित जगह पर ही टहलते रहें। आप चाहें तो अपने व्यायाम में थोड़ा वजन उठाने को भी शामिल कर सकते हैं। इसके लिए अगर डंबल आदि नहीं हैं तो पानी की बोतल या केन का उपयोग कर सकते हैं। इसी तरह योग तो छोटे कमरे में भी किया जा सकता है।

घर से काम करते हुए उत्पादकता बढ़ाएं

बहुत से लोग इन दिनों घरों से दफ्तर का काम कर रहे हैं। अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य ऐसा कर रहा है तो नीचे दिए कुछ नुस्खे अपना सकता है। इससे इस नए माहौल में काम करते हुए वह अपनी उत्पादकता बढ़ा सकता है।

नई हॉबी आजमाएं

तात्कालिक समस्या के बारे में ही सोचते रहने की बजाय कुछ नया आजमाएं! कोई नई हेल्दी चीज पकाएं। किसी नई आर्ट में हाथ आजमाएं, जो तनाव घटाने, रचनात्मकता बढ़ाने, चिंता व अवसाद दूर करने और बुजुर्गों में स्मृति बनाए रखने में प्रभावी पाई गई हैं।