सवाल एक दशक पुराना है. मैं परिवार सहित सड़क मार्ग से मिनिपोलिस ( अमेरिका) से एडीमॉन्टन ( कनाडा ) जा रहा था. मार्ग में ‘माउंट रश्मोर’ पड़ा. पहाड़ के शिखर पर चार विशाल आकृतियां चमक रही थीं. देश -विदेश से सैंकड़ों पर्यटकों की आंखें कतारबद्ध चारों मूर्तियों पर ज़मी हुई थीं. पत्थरों से निर्मित आकृतियों को देख देख कर गर्वीली टिप्पणियां कर रहे थे. जहां तक स्मृति साथ दे रही है, पर्यटक कहते थे : पहली आकृति ने अमेरिका को ब्रिटेन की दासता से मुक्त कराया और अमेरिकियों में स्वतंत्रता का बोध जन्मा; दूसरी ने सरकार कैसी होनी चाहिए का मार्ग और लोकतंत्र का रास्ता दिखाया; तीसरी ने आम श्रमिक के अधिकारों को रेखांकित किया; और अंतिम चौथी ने गुलामी से मुक्ति, समानता , स्वतंत्रता और जनता की सरकार का अहसास जगाया। जी हां, ये चारों आकृतियां या मूर्तियां हैं जोर्ज वाशिंगटन, थॉमस जेफ़र्सन, थिओडोर रूज़वेल्ट और अब्राहम लिंकन। 4 जुलाई,1776 को स्वतंत्र देश के रूप में जन्में अमेरिका की इतिहास यात्रा के ‘प्रकाश स्तम्भ’ के रूप में इन आकृतियों को देखा जाता है. विभिन्न क्षेत्रों में चारों के अमिट योगदान से ‘अमेरिका महान’ बना है. यदि इन चारों में से किसी भी एक आकृति को विलुप्त कर दिया जाए तो अमेरिका महान ‘तिड़क’ जायेगा। अमेरिका के दक्षिण डकोटा की सुन्दर सांवली पहाड़ियों में निर्मित मूर्तियों से एक सवाल सहज ही पैदा होता है : समाज, देश और राष्ट्र कैसे व कब महान बनते हैं ? क्या अपार पूंजी, अक्षय राज्य शक्ति, अमोघ शस्त्र भण्डार, निरंतर विजय, अभेद्य श्वेत वर्चस्वता, सत्ता -आतंक, भयभीत जनता और असीम उच्च प्रौद्योगिकी के बल पर महानता को अर्जित किया जाता है?
दोनों सवालों से वर्तमान अमेरिका आंदोलित है; डोनाल्ड ट्रम्प के शासन की दूसरी पारी में ‘ मागा आलाप’ की गूंज है. मागा का पूरा अर्थ है ‘ make america great again’ अर्थात ‘ अमेरिका को पुनः महान बनाओ’ . ट्रम्प मंडली द्वारा गढ़ा यह नारा लोग और मीडिया, दोनों क्षेत्रों पर समान रूप से छाया हुआ है. शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जो इस अलाप से अपरिचित है. श्वेत -अश्वेत, दोनों के यहां मागा को लेकर समर्थक या विरोधी टिप्पणियां सुनने को मिल जाएंगी। लोगबाग फब्तियां भी कसते हैं. वास्तव में, ‘ अमेरिका महान ‘ किसे कहते हैं, इसे लेकर भ्रांतियां हैं: एक. क्या टेर्रिफ वसूलने से महान होगा?,दो. क्या भय -आतंक का माहौल बनाये रखने से महान बनेगा,तीन. क्या शिक्षा विभाग को बंद करने, शोध व पुस्तकालय की वित्त -कटौती, उद्योगपति एलन मस्क की दौलत में ईजाफ़ा, विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता -हरण, इजराइल द्वारा ग़ज़ा में नरसंहार व सैलानियों के लिए तटीय सौन्द्रीयकरण, ईरान – तबाही, संयुक्त राष्ट्र व विश्व व्यापार मंच का अमेरिकीकरण और एकल ध्रुवीय शक्ति व्यवस्था की निरंतरता से अमेरिका को फिर से महान बनाया जायेगा ? क्या दुनिया अमेरिका को ग्रीन लैंड पर स्थायी आधिपत्य के बाद महानता की मान्यता देगी ? दिलचस्प राजनैतिक परिदृश्य तो यह है कि भारत में ‘विश्व गुरु’ और संयुक्त राज्य अमेरिका में’ अमेरिका महान’ बनाने के अभियान ज़ोर -शोर से समानांत चलाये जा रहे हैं; एक का नेतृत्व संघ व नरेंद्र मोदी कर रहे हैं; दूसरे का नेतृत्व डोनाल्ड ट्रम्प के हाथों में है; और दोनों नेतृत्व को कॉर्पोरेट पूंजी सत्ता व मीडिया का अटूट समर्थन प्राप्त है. वर्तमान ट्रम्प -अमेरिका में जिन प्रवृत्तियों का उभार दिखाई दे रहा है, भारत में पिछले दस सालों से बारी- बारी से ऐसी प्रवृत्तियां सिलसिलेवार सामने आती रही हैं. अब भारतीय इन प्रवृत्तियों के कोड़ों को झेलने के अभ्यस्त होते जा रहे हैं. लेकिन,दोनों देशों में एक बड़ा फ़रक़ भी दिखाई देता है. अमेरिका में ट्रम्प -जनित प्रवृतियों के ख़िलाफ़ जनता जल्दी ही सड़कों पर उतर आई. देश के सभी 50 राज्यों में गत शनिवार को विराट प्रदर्शन हुए थे, न्यूयॉर्क जैसे शहर के मुख्यमार्ग प्रदर्शनकारियों से पट गए थे. ट्रम्प और फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध के नारे मैनहटन की बिल्डिंगों से टकराये थे। परन्तु, भारत में राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे दृश्यों का अकाल दिखाई देता है. किसान ज़रूर आंदोलित हैं. संघ +मोदी जनित प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ मध्य और युवा वर्ग उदासीन रहा है. वज़ह, मोदी+शाह शासन ने हिंदुत्व को अपनी ढाल बनाया और हिंदुत्व शस्त्र से समाज का ध्रुवीकरण कर डाला. इसके विपरीत अमेरिका में युवा वर्ग सड़कों पर उतरा है और मध्य वर्ग भी आंदोलित है. वास्तव में, ‘मागा नारा’ को लेकर लोग भ्रमित भी हैं. क्या ट्रंप की टैरिफ जंग अमेरिका को महान बना सकती है? फिलहाल तो इस जंग की सफलता को लेकर अमेरिकी समाज पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है ; शेयर बाजार लुढ़क रहे हैं; विकसित व विकासशील देशों में हाहाकार मचा हुआ है, भारत भी इसका अपवाद नहीं है; आर्थिक आपातकाल की आशंकाएं चमक रही हैं। वैसे अमेरिकी जनता भी टैरिफ जंग के संभावित परिणामों को लेकर भ्रमित है। इस भ्रम – भंवर में अमेरिका महान बन सकता है, लोग विश्वास के साथ कहने की स्थिति में नहीं हैं।
बुनियादी सवाल यह है कि इतिहास में किसी भी देश के महान कह लाने की आधारभूत कसौटियां क्या होती रही हैं ? यह एक ऐसा सवाल है जिसका अंतिम निर्णायक उत्तर अभी तक सामने नहीं आया है. यदि सुदृढ़ भव्य राज्य सत्ता को कसौटी माना जाता है तो मौर्य , रोमन, ओटोमन,ब्रिटिन, फ्रांस जैसे साम्राज्यों को महान माना जाना चाहिए। यदि निरंतर विजय और पराक्रम ही कसौटी हैं तो यूनान के सिकंदर से बड़ा महान कौन होगा ? इसीलिए इतिहास में’अलेक्जेंडर दी ग्रेट’ कहा गया है। यह खिताब रोम के शासक जूलियस सीजर और रूस के शासक पीटर को भी हासिल है।क्या चंगेज़ खां , हलाकु खान , कुब्ला खान, गज़नी, मोहम्मद गोरी जैसे हमलावरों व लुटेरों में से किसी एक में महान कहलाने की पात्रता है ? भारत में 1526 से 1857 तक हुए मुग़ल शासकों में से किस शासक को महान कहा जा सकता है ? भारत के इतिहास में केवल अशोक और अक़बर को महान माना गया है, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल को ‘स्वर्ण काल’के रूप में जरूर याद किया जाता है.
सवाल तो यह भी है कि क्या हिटलर और मुसोलिनी को महान कहा जाना चाहिए?
क्या उनके काल के जर्मनी और इटली को ‘महान देश’ की श्रेणी में रखा जा सकता है ? दोनों नेताओं का कितना त्रासद अंत हुआ था, यह सर्व विदित है. क्या इराक़ के सद्दाम हुसैन और लीबिया के क़द्दाफ़ी महान हो सकते हैं ? क्या मज़हबी नेतृत्व से शासित ईरान को ‘महान राष्ट्र ‘ से परिभाषित किया जा सकता है? यही सवाल इस्लामी ईरान के सूत्रधार अयातुल्ला खोमैनी पर लागू होता है. गज़ा में इजरायल को फ़तह पर फ़तह मिलती जा रही है।उसके सामने पश्चिम एशिया के मुस्लिम देश लाचार दिखाई दे रहे हैं। तब क्या इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू को ’महान नेता’ कहा जाना चाहिए? इस पृष्ठभूमि में ट्रम्प मंडली का ‘मागा नारा’ भविष्य में कितना प्रासंगिक व प्रभावशाली सिद्ध होगा, यह सवाल ज़रूर विचारणीय है, साथ ही चिंताजनक भी. भारत में विश्व गुरु और अमेरिका में अमेरिका महान के नारे आधुनिक मिथकों को जन्म देते हैं। दोनों प्रकार के नारों में अपने अपने देश के नागरिकों को भ्रमजाल और विवेकहीनता+ तर्कहीनता में उलझाए रखने की पर्याप्त सामग्री है क्योंकि शासकों ने महान राष्ट्र की कोई सर्वमान्यता प्राप्त परिभाषा और कसौटियों को जनता के सामने पेश नहीं किया है। एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक मायाजाल रचा है। इस जाल में जनता उलझती जा रही है। यह मायाजाल अतीत के वैभव ,नायक – नायिकाओं, किंवदंतियों आदि को हाइटेक के माध्यम से लोक को परोसता है। लोक चेतना का अपहरण करता है। उसे अनुकूलित बनाता है। क्या व्यक्ति पूजा या शासक गुणगान से राष्ट्र महान कहलाता है या शिखर नेता महान बनता है ? चरम व उग्र दक्षिणपंथ के दौर में भारत, अमेरिका सहित विभिन्न देशों में राष्ट्रध्यक्ष और शासनाध्यक्ष का ही महिमामंडन किया जा रहा है। इसके लिए अरब – ख़रब रूपये व डॉलर बहाए जा रहे हैं, मीडिया का जबरदस्त अनुकूलीकरण किया गया है।
क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी विजय से राष्ट्र महान बन जाते हैं? पिछले एक दशक से मोदीजी प्रधानमंत्री हैं। उससे पहले 12 – 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके थे। क्या गुजरात और भारत विश्व गुरु या महान बने हैं?विकास का गुजरात मॉडल कब का अस्त हो चुका है। इसी तरह, ट्रंप भी 2016 से 20 तक अमेरिका के राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुके हैं। क्या उनके प्रथम शासन काल में अमेरिका महान होने की कोई झलक दिखाई दी? उनकी विदाई के क्षणों में संसद भवन पर हमला जरूर हुआ था। राष्ट्रपति ट्रंप अनेक आपराधिक मामलों में फंसे हुए हैं।राष्ट्रपति पद पर आसीन हैं, इसलिए सज़ा से सुरक्षित हैं। क्या ट्रंप के विवादास्पद कारनामों की पृष्ठभूमि को देखते हुए अमेरिका महान बन सकता है? क्या राजनैतिक इतिहासकार ट्रंप को लिंकन, रूज़वेल्ट, आईजन आवर, कैनेडी, ओबामा जैसे राष्ट्रपतियों की कतार में खड़ा करेगा? राष्ट्रपति बनने के बावजूद ट्रंप की छवि ‘बिल्डर व मनमौजी’ की है। उनमें राजनेता की छवि दिखाई नहीं देती है। उन्हें आत्ममुग्ध और कॉर्पोरेट समर्थक शासक के रूप में देखा जाता है। इसी कसौटी पर प्रधानमंत्री मोदी को भी रखा जा सकता है; एक व्यक्ति जो स्वयं को ‘नॉन बायोलॉजिकल व ईश्वरीय मिशन’ के रूप में देखता हो , उससे किस प्रकार के ‘ भारत महान ’ की अपेक्षा की जा सकती है? यदि कोई शिखर नेता महान है, तब क्या उसके साथ साथ देश भी महान बन जाता है ? थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि मोदी + ट्रम्प महान बन गए हैं, तब क्या भारत और अमेरिका भी स्वतः विश्व गुरु व महान हो गए हैं? क्या दोनों नेता अपने अपने देश के पर्याय हैं? 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इंडिया के पर्याय के रूप में चित्रित किया गया था; नारा उछला था : इंडिया इज़ इंदिरा- इंदिरा इज़ इंडिया। इस नारे के कैसे नतीज़े निकले थे, सभी जानते हैं: जनता ने इंदिरा + कांग्रेस को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था. क्या इस ऐतिहासिक तथ्य से मोदी+ शाह जोड़ी अपरिचित होगी, यह निष्कर्ष निकालना ग़लत होगा. एक समय रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और जॉर्ज बुश जूनियर के शासन कालों में भी ‘अमेरिका महान’ की छवि बनाने की कोशिशें हुई थीं। लेकिन, क्या परिणाम निकले ? सद्दाम और इराक़ को तबाह ज़रूर किया, लेकिन वहां से अमेरिका एक भी रासायनिक शस्त्र को ढूंढ कर निकाल नहीं सका. अमेरिका को ज़बरदस्त बदनामी का सामना करना पड़ा.एक झूठा राष्ट्र बन कर रह गया. उससे पहले वाटरगेट स्कैंडल में निक्सन को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि मोदी -काल में किस विश्वविद्यालय ने भारत को ‘विश्व गुरु ‘ का प्रमाण पत्र दिया है? क्या संयुक्त राष्ट्र ने भारत को इस ख़िताब से नवाज़ा है ? अमेरिका को भी कहां से महानता की डिग्री प्राप्त होगी ? क्या इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच का इस्तेमाल किया जायेगा ? या फिर मोदी+ट्रम्प ‘अपने मियां मिट्ठू’ बनने से काम चलाएंगे ?
सारांश में देखें, देश या राष्ट्र महान का पैमाना है जनता और राजसत्ता के मध्य संबंध व संवाद का स्तर कैसा है? राज्य का चरित्र कैसा है ? राज्य अपने समाज के अंतिम इंसान के साथ कैसा व्यवहार करता है ? क्या राज्य की विभिन्न संस्थाएं ‘सर्वजन न्याय संगत हिताय’ के प्रति समर्पित है या ‘एक वर्गजन हिताय’ के लिए कार्यरत हैं ? भारत में अब तक के अनुभव- परिणामों से साफ़ है कि कॉर्पोरेट घरानों की दौलत में अपार वृद्धि हुई है, और 80 -81 करोड़ लोग सरकारी ख़ैरात पर गुज़र -बसर कर रहे हैं। भारत निर्धनता, मानवाधिकार तथा प्रेस आज़ादी की तालिकाओं में दयनीय स्तरों पर है. . भारत के आधारभूत धर्मनिरपेक्ष चरित्र में दरारें पड़ चुकी हैं, मंदिर बनाम मस्ज़िद और श्मसान बनाम कब्रिस्तान की जंग में राष्ट्र को झोंक दिया गया है. इतिहास के सफों से मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं. त्रासद संयोग यह है कि मोदी के भारत और ट्रम्प के अमेरिका में ‘इस्लाम फोबिया’ समान रूप से फैला हुआ है.दोनों ही देशों में ग़ज़ा में नर संहार के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का प्रदर्शन नहीं कर सकते. यदि करते हैं तो राजसत्ता के नज़ले का निशाना बनते हैं. जब राजसत्ताएं अपने ही नागरिकों को आतंकित करने लग जाती हैं, तब शासकों से महानता की आशा कैसे की जा सकती है? क्या मध्ययुगीन प्रतिगामी दृष्टि से किसी देश को विश्व गुरु या महान बनाया जा सकता है ? शासक खुद को महान भले ही बनाले या जनता से मनवा ले, लेकिन देश तो महान नहीं कह लाएगा और न ही क़ौमें महान बनेंगी। देश को महान बनाने के लिए जनता और राज्य नियंताओं के मध्य जीवंत व विवेचनात्मक रिश्ते ज़रूरी है. आलोचनात्मक संवाद के अभाव में भय, आतंक,नफरत,परस्पर संदेह , समाज का ध्रुवीकरण , लोकतंत्र की मौत और निर्वाचित तानाशाही के ख़तरे बढ़ने लगते हैं. विडंबना है कि मोदी+ ट्रंप के नेतृत्व में विश्व गुरु और महान बनने की महत्वाकांक्षाओं से लदे दोनों देशों में आत्मघाती प्रवृत्तियों का ज्वार आया हुआ है. इस ज्वार पर विजय कैसे होगी, यह जनता के विवेचनात्मक व सकारात्मक प्रतिरोध पर निर्भर करता है.